Types of Hindu Marriages in Hindi: हिंदू धर्म में विवाह को एक पवित्र बंधन माना जाता है। शास्त्रों में आठ प्रकार के विवाहों का वर्णन किया गया है। इस लेख में, हम हिंदू विवाह के 8 प्रकारों पर चर्चा करेंगे और इनके बारे में विस्तृत जानकारी देंगे।
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Types of Hindu Marriages in Hindi
हिंदू धर्म में विवाह को जीवन का एक महत्वपूर्ण संस्कार माना जाता है। यह दो आत्माओं का मिलन है, जो जीवन के हर सुख-दुःख में साथ निभाते हैं। हिंदू विवाह (Hindu Marriage) केवल एक सामाजिक बंधन नहीं है, बल्कि यह एक धार्मिक और आध्यात्मिक बंधन भी है।
हिंदू विवाह के 8 प्रकार हैं, जिनमें से प्रत्येक की अपनी विशेषताएं हैं। इन विवाहों का वर्णन हिंदू धर्म के ग्रंथों में मिलता है। आज इस लेख में हम जानेंगे कि हिंदू धर्म में विवाह के 8 प्रकार क्या हैं? (Hindu Vivah ke Prakar)
विवाह क्या है? (What is Marriage)
विवाह एक सामाजिक और धार्मिक बंधन है जो दो व्यक्तियों को एकजुट करता है। यह एक ऐसा रिश्ता होता है जिसमें दो व्यक्ति जीवन भर एक दूसरे के साथ रहने का वादा करते हैं। विवाह के कई प्रकार होते हैं, जैसे कि हिंदू विवाह, मुस्लिम विवाह, सिख विवाह, और ईसाई विवाह (विवाह के प्रकार)।
विवाह एक महत्वपूर्ण निर्णय है। विवाह करने से पहले, दो व्यक्तियों को एक दूसरे को अच्छी तरह से जानना चाहिए और एक दूसरे के साथ जीवन जीने के लिए तैयार रहना चाहिए।
विवाह के 8 प्रकार कौन कौन से हैं? (Types of Hindu Marriage)
हिंदू धर्म में कितनी शादी कर सकता है? और हिंदू विवाह कितने प्रकार के होते हैं? इनमे से प्रत्येक की अपनी विशेषताएं नीचे दी गई हैं:
ब्रह्म विवाह:
ब्रह्म विवाह सबसे श्रेष्ठ विवाह माना जाता है। इसमें वर और वधु दोनों समान वर्ण के होते हैं और उनकी आपसी सहमति होती है। कन्यादान का विशेष महत्व होता है और वैदिक मंत्रों का जाप किया जाता है। नीचे देखिए की ब्रह्म विवाह कैसे होता है?
रीति-रिवाज:
- वर और वधु को स्नान कराया जाता है और नए वस्त्र पहनाए जाते हैं।
- कन्या पक्ष वर पक्ष को दान-दक्षिणा देता है।
- कन्यादान के बाद वर और वधु अग्नि के चारों ओर सात फेरे लेते हैं।
- मंत्रोच्चारण और हवन के बाद विवाह संपन्न होता है।
महत्व:
- यह विवाह सामाजिक और धार्मिक रूप से स्वीकृत है।
- इस विवाह में वर और वधु के बीच समानता और प्रेम होता है।
- यह विवाह जीवन भर चलने के लिए होता है।
दैव विवाह:
दैव विवाह में कन्या को किसी सिद्ध पुरुष या ज्ञानी को दान में दिया जाता है। कन्या की सहमति आवश्यक नहीं होती। नीचे देखिए की दैव विवाह कैसे होता है?
रीति-रिवाज:
- कन्या को स्नान कराया जाता है और नए वस्त्र पहनाए जाते हैं।
- कन्या पक्ष कन्या को दान में देता है।
- मंत्रोच्चारण और हवन के बाद विवाह संपन्न होता है।
महत्व:
- यह विवाह धार्मिक गुरु के प्रति समर्पण का प्रतीक है।
- इस विवाह में कन्या को ज्ञान और मोक्ष प्राप्त करने का अवसर मिलता है।
आर्ष विवाह:
आर्ष विवाह में कन्या के पिता वर को गाय और बैल दान में देते हैं। कन्या की सहमति आवश्यक नहीं होती। नीचे देखिए कि आर्ष विवाह कैसे होता है?
रीति-रिवाज:
- वर और वधु को स्नान कराया जाता है और नए वस्त्र पहनाए जाते हैं।
- कन्या पक्ष वर को गाय और बैल दान में देता है।
- कन्यादान के बाद वर और वधु अग्नि के चारों ओर सात फेरे लेते हैं।
- मंत्रोच्चारण और हवन के बाद विवाह संपन्न होता है।
महत्व:
- यह विवाह गाय और बैल के प्रति सम्मान का प्रतीक है।
- इस विवाह में वर और वधु के बीच समानता और प्रेम होता है।
प्रजापत्य विवाह:
प्रजापत्य विवाह में माता-पिता अपनी पुत्री का विवाह एक योग्य वर से करते हैं। कन्या की सहमति आवश्यक नहीं होती। नीचे देखिए कि प्रजापत्य विवाह कैसे होता है?
रीति-रिवाज:
- वर और वधु को स्नान कराया जाता है और नए वस्त्र पहनाए जाते हैं।
- माता-पिता कन्या का विवाह वर से करते हैं।
- कन्यादान के बाद वर और वधु अग्नि के चारों ओर सात फेरे लेते हैं।
- मंत्रोच्चारण और हवन के बाद विवाह संपन्न होता है।
महत्व:
- यह विवाह माता-पिता के प्रति सम्मान का प्रतीक है।
- इस विवाह में वर और वधु के बीच समानता और प्रेम होता है।
प्राचीन हिन्दू विवाह के प्रकार
असुर विवाह:
असुर विवाह में वर कन्या पक्ष को धन देकर कन्या से विवाह करता है। यह विवाह आजकल प्रचलित नहीं है। नीचे देखिए कि असुर विवाह कैसे होता है?
रीति-रिवाज:
- वर कन्या पक्ष को धन देता है।
- कन्यादान के बाद वर और वधु अग्नि के चारों ओर सात फेरे लेते हैं।
- मंत्रोच्चारण और हवन के बाद विवाह संपन्न होता है।
महत्व:
- असुर विवाह में वर कन्या पक्ष को धन देकर कन्या से विवाह करता है।
- कुछ समाजों में, कन्या को दहेज देकर विवाह करना सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक माना जाता है।
- असुर विवाह का उपयोग वंशावली को बनाए रखने के लिए किया जाता था।
- असुर विवाह का उपयोग राजनीतिक गठबंधन बनाने के लिए भी किया जाता था।
गंधर्व विवाह:
गंधर्व विवाह में वर और वधु अपनी मर्जी से विवाह करते हैं। माता-पिता की सहमति आवश्यक नहीं होती। यह विवाह आजकल प्रचलित नहीं है। नीचे देखिए की गंधर्व विवाह कैसे होता है?
रीति-रिवाज:
- वर और वधु अपनी मर्जी से विवाह करते हैं।
- कन्यादान के बाद वर और वधु अग्नि के चारों ओर सात फेरे लेते हैं।
- मंत्रोच्चारण और हवन के बाद विवाह संपन्न होता है।
महत्व:
- यह विवाह प्रेम विवाह का प्रतीक है।
- इस विवाह में वर और वधु के बीच समानता और प्रेम होता है।
राक्षस विवाह:
राक्षस विवाह में वर बलपूर्वक कन्या का अपहरण कर उससे विवाह करता है। यह विवाह निषिद्ध माना जाता है। नीचे देखिए कि राक्षस विवाह कैसे होता है?
रीति-रिवाज:
- वर बलपूर्वक कन्या का अपहरण करता है।
- कन्यादान के बाद वर और वधु अग्नि के चारों ओर सात फेरे लेते हैं।
- मंत्रोच्चारण और हवन के बाद विवाह संपन्न होता है।
महत्व:
- यह विवाह निषिद्ध माना जाता है।
- इस विवाह में वर और वधु के बीच समानता और प्रेम नहीं होता है।
पैशाच विवाह:
पैशाच विवाह में वर और वधु शराब के नशे में या कामुकता के वशीभूत होकर विवाह करते हैं। यह विवाह भी निषिद्ध माना जाता है। नीचे देखिए कि पैशाच विवाह कैसे होता है?
रीति-रिवाज:
- वर और वधु शराब के नशे में या कामुकता के वशीभूत होकर विवाह करते हैं।
- कन्यादान के बाद वर और वधु अग्नि के चारों ओर सात फेरे लेते हैं।
- मंत्रोच्चारण और हवन के बाद विवाह संपन्न होता है।
महत्व:
- यह विवाह निषिद्ध माना जाता है।
- इस विवाह में वर और वधु के बीच समानता और प्रेम नहीं होता है।
हिंदू विवाह में 7 चरणों का क्या मतलब है?
हिंदू विवाह में 7 चरणों का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान होता है। इन 7 चरणों को सप्तपदी कहा जाता है।
सप्तपदी का अर्थ:
- सप्तपदी का अर्थ है सात कदम।
- ये सात कदम जीवन के सात लक्ष्यों का प्रतीक हैं:
- धर्म (धार्मिकता)
- अर्थ (आर्थिक सुरक्षा)
- काम (इच्छाओं की पूर्ति)
- मोक्ष (आत्मा की मुक्ति)
- प्रजा (संतान)
- रक्ष (सुरक्षा)
- मित्रता (दोस्ती)
- प्रत्येक चरण के साथ, वर और वधु एक-दूसरे के प्रति अपनी वचनबद्धता और समर्पण व्यक्त करते हैं।
सप्तपदी के 7 चरण:
- पहला चरण: वर और वधु अग्नि को साक्षी मानकर एक दूसरे का हाथ पकड़ते हैं।
- दूसरा चरण: वर वधु को भोजन और पोषण का वादा करता है।
- तीसरा चरण: वधु वर को धन और समृद्धि का वादा करती है।
- चौथा चरण: वर वधु को सुरक्षा और शक्ति का वादा करता है।
- पांचवां चरण: वधु वर को ज्ञान और शिक्षा का वादा करती है।
- छठा चरण: वर वधु को संतान और परिवार का वादा करता है।
- सातवां चरण: वधु वर को मित्रता और सहयोग का वादा करती है।
सप्तपदी के बाद, वर और वधु पति-पत्नी बन जाते हैं।
सप्तपदी का महत्व:
- सप्तपदी हिंदू विवाह का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
- यह वर और वधु के बीच पवित्र बंधन का प्रतीक है।
- यह जीवन भर साथ रहने और एक दूसरे का साथ देने का वादा है।
4 फेरे क्यों लेते हैं?
विवाह में चार फेरे लेने के पीछे कई धार्मिक और सांस्कृतिक कारण हैं। कुछ प्रमुख कारणों में शामिल हैं:
चार पुरुषार्थों का प्रतिनिधित्व:
चार फेरे चार पुरुषार्थों – धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- पहला फेरा धर्म का प्रतीक है, जो जीवन में सही रास्ते पर चलने का संकल्प दर्शाता है।
- दूसरा फेरा अर्थ का प्रतीक है, जो जीवन में समृद्धि और भौतिक सुखों की प्राप्ति का संकल्प दर्शाता है।
- तीसरा फेरा काम का प्रतीक है, जो जीवन में प्रेम और संतुष्टि की प्राप्ति का संकल्प दर्शाता है।
- चौथा फेरा मोक्ष का प्रतीक है, जो जीवन में आध्यात्मिक उन्नति और मुक्ति का संकल्प दर्शाता है।
जीवन के चार चरणों का प्रतिनिधित्व:
चार फेरे जीवन के चार चरणों – बाल्यावस्था, युवावस्था, गृहस्थी और वानप्रस्थ का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- पहला फेरा बाल्यावस्था का प्रतीक है, जिसमें वर-वधू एक-दूसरे के साथ दोस्ती और स्नेह का वादा करते हैं।
- दूसरा फेरा युवावस्था का प्रतीक है, जिसमें वर-वधू एक-दूसरे के प्रति प्रेम और समर्पण का वादा करते हैं।
- तीसरा फेरा गृहस्थी का प्रतीक है, जिसमें वर-वधू एक-दूसरे के साथ जीवन भर साथ रहने और परिवार बनाने का वादा करते हैं।
- चौथा फेरा वानप्रस्थ का प्रतीक है, जिसमें वर-वधू एक-दूसरे के साथ आध्यात्मिक जीवन जीने का वादा करते हैं।
चार दिशाओं का प्रतिनिधित्व:
चार फेरे चार दिशाओं – उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- पहला फेरा उत्तर दिशा का प्रतीक है, जो ज्ञान और बुद्धि का प्रतीक है।
- दूसरा फेरा दक्षिण दिशा का प्रतीक है, जो धन और समृद्धि का प्रतीक है।
- तीसरा फेरा पूर्व दिशा का प्रतीक है, जो सफलता और प्रसिद्धि का प्रतीक है।
- चौथा फेरा पश्चिम दिशा का प्रतीक है, जो आध्यात्मिक उन्नति और मुक्ति का प्रतीक है।
पंचतत्वों का प्रतिनिधित्व:
चार फेरे पंचतत्वों – पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- पहला फेरा पृथ्वी का प्रतीक है, जो जीवन का आधार है।
- दूसरा फेरा जल का प्रतीक है, जो जीवन के लिए आवश्यक है।
- तीसरा फेरा अग्नि का प्रतीक है, जो जीवन में ऊर्जा और प्रकाश का प्रतीक है।
- चौथा फेरा वायु और आकाश का प्रतीक है, जो जीवन में स्वतंत्रता और खुलेपन का प्रतीक है।
विवाह में चार फेरे लेने के पीछे कई धार्मिक और सांस्कृतिक कारण हैं। यह वर-वधू के बीच एक पवित्र बंधन का प्रतीक है, जो जीवन भर साथ रहने और एक दूसरे का समर्थन करने का वादा करते हैं।
निष्कर्ष:
हिंदू धर्म में विवाह को एक पवित्र बंधन माना जाता है। शास्त्रों में आठ प्रकार के विवाहों का वर्णन किया गया है (धर्म के अनुसार विवाह क्या है?), जिनमें से कुछ आज भी प्रचलित हैं। इन विवाहों के रीति-रिवाज और महत्व अलग-अलग हैं।
Types of Hindu Marriages in Hindi: अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
प्रश्न: हिंदू धर्म में विवाह के कितने प्रकार हैं?
उत्तर: हिंदू धर्म में विवाह के 8 प्रकार हैं:
- ब्रह्म विवाह
- दैव विवाह
- आर्ष विवाह
- प्राजापत्य विवाह
- असुर विवाह
- गंधर्व विवाह
- राक्षस विवाह
- पैशाच विवाह
प्रश्न: 4 फेरे क्यों लेते हैं?
उत्तर: 4 फेरे 4 पुरुषार्थों, जीवन के 4 चरणों, 4 दिशाओं और पंचतत्वों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
प्रश्न: हिंदू धर्म में विवाह के 7 व्रत कौन से हैं?
उत्तर: 7 व्रत हैं:
- धर्म
- प्रजा
- ऋत
- रति
- पुष्टि
- पतिव्रता
- पति
प्रश्न: विवाह में कितने फेरे होते हैं?
उत्तर: 7 फेरे होते हैं।
प्रश्न: विवाह के 7 चरणों का क्या अर्थ है?
उत्तर: 7 चरणों का अर्थ है:
- कन्यादान
- कन्यादान
- मंगलसूत्र धारण
- हवन
- कन्यादान
- सप्तपदी
- अग्नि प्रवेश
प्रश्न: ब्रह्म विवाह कैसे होता है?
उत्तर: ब्रह्म विवाह में लड़का-लड़की अपनी इच्छा से, बिना दहेज के शादी करते हैं। वेद मंत्रों का उच्चारण और यज्ञ हवन होता है।
प्रश्न: भारत में कितने प्रकार के विवाह होते हैं?
उत्तर: भारत में मुख्य रूप से 4 प्रकार के विवाह होते हैं:
- हिंदू विवाह
- मुस्लिम विवाह
- ईसाई विवाह
- सिविल विवाह
प्रश्न: हिंदू विवाह कानूनी रूप से मान्य है?
उत्तर: हाँ, हिंदू विवाह कानूनी रूप से मान्य है। हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत विवाह पंजीकृत करवाना अनिवार्य है।
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