Pahadi Wedding Traditions: पहाड़ी विवाह की परंपराएं संस्कृति, प्रेम और परिवार के मेल का प्रतीक हैं। जानिए पहाड़ी विवाह की हर खास रस्म की पूरी जानकारी!
हिन्दू शादियां रात में क्यों होती हैं?
Pahadi Wedding Traditions:
भारत के पहाड़ी राज्यों (हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर भारत) में विवाह सिर्फ दो आत्माओं का मिलन नहीं होता, बल्कि यह एक ऐसा भव्य उत्सव होता है जो परंपरा, आध्यात्मिकता और प्रकृति से जुड़ा होता है। पहाड़ी शादी की रस्में (Pahadi Shadi ki Rasme) की खासियत यह होती है कि ये प्रकृति के सानिध्य में पारंपरिक रीति-रिवाज के साथ संपन्न होती हैं, जिनमें लोकगीत, नृत्य, पूजा-पाठ और पारंपरिक पकवानों की विशेष भूमिका होती है।
इस लेख में हम पहाड़ी विवाह (Pahadi Vivah) की सभी महत्वपूर्ण रस्मों का विस्तार से वर्णन करेंगे, जिन्हें तीन चरणों में बांटा गया है:
- विवाह पूर्व रस्में (Pre-Wedding Rituals)
- विवाह संस्कार (Wedding Rituals)
- विवाह उपरांत रस्में (Post-Wedding Rituals)
पहाड़ी शादी से पहले की रस्में और परंपराएँ (Pre-Wedding Rituals )
1. रिश्ता पक्का करना (Nata-Thata या रोका रस्म)
पहाड़ी समाज में विवाह (Pahadi Vivah) से पहले लड़का और लड़की के परिवार आपसी सहमति से रिश्ता तय करते हैं। इसके लिए— गौत्र और कुलदेवता का मिलान किया जाता है, जिससे यह सुनिश्चित किया जाता है कि दोनों परिवारों का वंश एक न हो। ज्योतिष के आधार पर कुंडली मिलान किया जाता है, जिससे शादी का शुभ मुहूर्त निकाला जाता है। हिमाचल में इस रस्म को “बात पक्की” कहा जाता है, जिसमें वर पक्ष वधू के घर जाकर मिठाइयाँ, उपहार और पारंपरिक शगुन देते हैं।
2. टिक्का रस्म (Tilak Ceremony)
टिक्का रस्म पहाड़ी शादियों में एक महत्वपूर्ण परंपरा होती है, जो विवाह के शुभारंभ का प्रतीक मानी जाती है। इसे उत्तराखंड में “शगुन”, हिमाचल में “तिलक” और कई स्थानों पर “रोका” के रूप में भी जाना जाता है। इस रस्म के दौरान, वधू का परिवार वर को आशीर्वाद देने के लिए विशेष रूप से आमंत्रित करता है और उसे तिलक लगाकर विवाह को औपचारिक रूप से स्वीकार करता है।
3. मंगनी या सगाई (Engagement Ceremony)
मंगनी या सगाई (Engagement Ceremony) पहाड़ी विवाह परंपरा की एक महत्वपूर्ण रस्म है, जो वर-वधू के रिश्ते को आधिकारिक रूप से स्वीकार करने और विवाह की तैयारियाँ शुरू करने का संकेत देती है। इस रस्म के दौरान दूल्हा और दुल्हन एक-दूसरे को अंगूठी पहनाते हैं, और परिवारों के बीच मिठाइयों, पारंपरिक वस्त्रों और उपहारों का आदान-प्रदान किया जाता है। इसे उत्तराखंड में निशचय और हिमाचल में सगाई कहा जाता है, जहाँ इस अवसर पर पारंपरिक लोकगीत और नृत्य होते हैं। बुजुर्गों का आशीर्वाद लेकर यह रस्म वर-वधू के सुखी वैवाहिक जीवन की शुभकामना के साथ संपन्न होती है।
4. मांगल गीत और लोकगान (Mangal Geet and Folk Songs)
मांगल गीत और लोकगान पहाड़ी शादी परंपराओं का एक अहम हिस्सा होते हैं। ये गीत शादी के हर चरण में गाए जाते हैं और विवाह समारोह को आनंदमय, शुभ और आध्यात्मिक बनाते हैं। उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में पारंपरिक विवाह गीतों को मांगल गीत कहा जाता है, जो घर-परिवार की बुजुर्ग महिलाएँ मिलकर गाती हैं। इन गीतों में शिव-पार्वती, राम-सीता, कृष्ण-राधा और अन्य देवी-देवताओं के आशीर्वाद का आह्वान किया जाता है, ताकि नवविवाहित जोड़े का जीवन सुखी और समृद्ध हो।
5. पत्रिका या न्योता भेजना (Nyota Bhejna)
पत्रिका या न्योता भेजना पहाड़ी विवाह परंपरा का एक अहम हिस्सा है, जो केवल आमंत्रण नहीं बल्कि रिश्तों का सम्मान और सामाजिक जुड़ाव दर्शाता है। पारंपरिक रूप से न्योता मिठाइयों, फल, नारियल और शगुन के साथ दिया जाता है, और परिवार के बड़े बुजुर्ग स्वयं मेहमानों के घर जाकर “पांव पड़ाई” करते हैं। हिमाचल और उत्तराखंड में न्योते के साथ मांगल गीत गाने और सुपारी, रोली या अक्षत देने की भी परंपरा है। आधुनिक समय में डिजिटल इन्विटेशन, व्हाट्सएप और ई-न्योते का चलन बढ़ गया है, लेकिन पारंपरिक न्योता अब भी परिवारों के लिए विशेष महत्व रखता है। यह सिर्फ शादी में बुलाने का जरिया नहीं, बल्कि आपसी प्रेम और सामाजिक समरसता का प्रतीक भी है।
6. मटकोर रस्म (Matkor Ritual)
मटकोर रस्म पहाड़ी विवाह परंपराओं की एक महत्वपूर्ण और पवित्र रस्म है, जो शादी से एक दिन पहले होती है। इस रस्म में वधू और वर के घर की महिलाएँ समूह बनाकर किसी पवित्र स्थान, मंदिर या जलाशय (जैसे नदी, तालाब या कुएँ) से शुद्ध मिट्टी लाने जाती हैं। यह मिट्टी दुल्हन और दूल्हे के घर में होने वाली हल्दी रस्म के लिए उपयोग की जाती है, जिसे शुभ और मंगलकारी माना जाता है।
इस दौरान महिलाएँ पारंपरिक मांगल गीत गाती हैं और नृत्य करती हैं, जिससे पूरे माहौल में आनंद और पवित्रता का संचार होता है। यह रस्म विशेष रूप से उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश की पहाड़ियों में निभाई जाती है, जहाँ इसे शुद्धि और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, मटकोर की मिट्टी से विवाह स्थल को पवित्र किया जाता है, ताकि दूल्हा-दुल्हन का वैवाहिक जीवन सुखद और समृद्ध हो।
7. हल्दी और मेंहदी रस्म (Haldi & Mehndi Rasm)
हल्दी और मेंहदी रस्म पहाड़ी विवाह की सबसे सुंदर और शुभ परंपराओं में से एक हैं, जो शादी से एक या दो दिन पहले होती हैं।
- हल्दी रस्म (Haldi Ceremony)
हल्दी रस्म को पवित्रता, शुभता और सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। इस रस्म में दूल्हा और दुल्हन के परिवारजन उन्हें हल्दी, दही और चंदन का उबटन लगाते हैं, जिससे उनका रंग निखरे और बुरी नजर से बचाव हो। पहाड़ी शादियों में हल्दी रस्म के दौरान मांगल गीत गाए जाते हैं, ढोल-दमाऊ बजते हैं और पारंपरिक नृत्य किए जाते हैं, जिससे माहौल हंसी-खुशी और उल्लास से भर जाता है। कुछ स्थानों पर इस रस्म के लिए मटकोर की मिट्टी का भी प्रयोग किया जाता है।
- मेंहदी रस्म (Mehndi Ceremony)
मेंहदी रस्म का विशेष महत्व होता है, जिसमें दुल्हन के हाथों और पैरों पर पारंपरिक मेंहदी डिज़ाइन्स बनाए जाते हैं। हिमाचल और उत्तराखंड में इसे “शगुन की मेंहदी” कहा जाता है, जिसमें दुल्हन के साथ-साथ परिवार की अन्य महिलाओं के हाथों में भी मेंहदी लगाई जाती है। मान्यता है कि मेंहदी का रंग जितना गहरा चढ़ता है, दूल्हा-दुल्हन के बीच प्रेम और ससुराल में अपनापन उतना ही अधिक होता है। इस रस्म के दौरान लोकगीत गाए जाते हैं और परिवार की महिलाएँ उत्साहपूर्वक पारंपरिक पहाड़ी नृत्य करती हैं।
8. संगीत समारोह (Sangeet Ceremony)
संगीत सेरेमनी पहाड़ी विवाह परंपराओं का एक उल्लासपूर्ण और मनोरंजक हिस्सा होता है, जिसमें वर-वधू के परिवारजन मिलकर नृत्य, गीत और संगीत का आनंद लेते हैं। यह रस्म शादी से एक या दो दिन पहले आयोजित की जाती है, जहाँ ढोल-दमाऊ, रणसिंघा और बांसुरी जैसे पारंपरिक पहाड़ी वाद्ययंत्रों की मधुर धुनों पर लोकगीत गाए जाते हैं और पारंपरिक नृत्य प्रस्तुत किए जाते हैं।
पहाड़ी संगीत समारोह (Pahadi Sangeet Ceremony) में मांगल गीत, भजन और शादी के खुशी भरे लोकगीत गाए जाते हैं, जिनमें दुल्हन की विदाई, दूल्हे के स्वागत और शादी की रस्मों का वर्णन किया जाता है। हिमाचल में ‘नाटी’ नृत्य और उत्तराखंड में ‘झुमैलो’ व ‘चौंफला’ नृत्य इस आयोजन की खास पहचान होते हैं। इसके अलावा, आजकल बॉलीवुड गानों पर भी डांस कर इस रस्म को और मजेदार बना दिया जाता है।
शादी के दिन की रस्में (Hindu Wedding Rituals)
9. बरात का आगमन (Baraat)
बरात का आगमन पहाड़ी विवाह की सबसे उत्साहजनक और भव्य रस्मों में से एक है। जब दूल्हे की बारात वधू के घर या विवाह स्थल पर पहुंचती है, तो पूरे गाँव और परिवार में खुशी और उल्लास का माहौल छा जाता है। हिमाचल में इसे धूलि कहा जाता है,
पहाड़ी शादियों में बरात के स्वागत की एक विशेष परंपरा होती है। दूल्हा पारंपरिक पोशाक पहनकर, सिर पर पगड़ी या मोरपंखी से सजी सेहरा बांधकर घोड़ी या कार से आता है। बारात में ढोल-दमाऊ, रणसिंघा, बांसुरी और अन्य पारंपरिक वाद्ययंत्रों की गूंज होती है, और बाराती नाटी, झुमैलो या चौंफला नृत्य करते हुए विवाह स्थल तक पहुंचते हैं।
10. मंडप और विवाह अनुष्ठान (Mandap and Vivah Anushthan)
मंडप पहाड़ी शादी का सबसे पवित्र स्थल होता है, जहाँ दूल्हा-दुल्हन सात फेरों के साथ अपने नए जीवन की शुरुआत करते हैं। यह विशेष रूप से केले, आम, पीपल, या देवदार की लकड़ी और फूलों से सजाया जाता है, जिससे इसे शुभ और दिव्य ऊर्जा से भरपूर बनाया जाता है। उत्तराखंड और हिमाचल की पहाड़ी शादी में मंडप को पारंपरिक तरीके से गाँव के बुजुर्ग और पंडित मिलकर तैयार करते हैं।
11. कंगना बांधने की रस्म (Kangan Tying Ceremony)
कंगना बांधने की रस्म पहाड़ी विवाह परंपराओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो शादी के दिन या उससे एक दिन पहले की जाती है। इस रस्म में दूल्हा और दुल्हन के दाहिने हाथ पर पवित्र धागा (कंगना) बांधा जाता है, जिसे बुरी नजर और नकारात्मक शक्तियों से रक्षा करने का प्रतीक माना जाता है।
12. मांग भराई और सिंदूर दान (Sindoor & Mangalsutra Ritual)
मांग भराई और सिंदूरदान पहाड़ी विवाह की सबसे शुभ और महत्वपूर्ण रस्मों में से एक होती है, जो सात फेरों के बाद संपन्न होती है। इस अनुष्ठान में दूल्हा दुल्हन की मांग में सिंदूर भरता है, जो उसके सुहाग और नए जीवन की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है। परिवार की महिलाओं की उपस्थिति में यह रस्म होती है, और इसके बाद दुल्हन सिर ढककर अपने नए जीवन की जिम्मेदारियों को स्वीकार करती है। पहाड़ी संस्कृति में सिंदूर को पति के लंबे जीवन, दांपत्य सुख और सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है, और यह विवाह बंधन की अमिट निशानी होती है, जिसे सुहागन स्त्रियाँ जीवनभर धारण करती हैं।
13. कन्यादान (Kanyadaan Ritual)
कन्यादान पहाड़ी विवाह की सबसे भावुक और पवित्र रस्म होती है, जिसमें वधू के माता-पिता अपनी बेटी को दूल्हे के हाथों सौंपते हैं। यह रस्म दर्शाती है कि अब कन्या अपने नए परिवार की जिम्मेदारियों को निभाने के लिए तैयार है। विवाह मंडप में पुरोहित वेद मंत्रों के साथ इस अनुष्ठान को संपन्न कराते हैं, जिसमें वधू के पिता दूल्हे के हाथ में अपनी बेटी का हाथ रखते हैं और उसे धर्म, प्रेम और सम्मान से निभाने का वचन लेते हैं। यह रस्म त्याग, आशीर्वाद और निःस्वार्थ प्रेम का प्रतीक मानी जाती है, और इसे करने वाले माता-पिता को अत्यंत पुण्य लाभ प्राप्त होता है।
14. चावल और पान की रस्म (Rice & Paan Rasm)
चावल और पान की रस्म पहाड़ी विवाह की एक अनोखी और शुभ परंपरा होती है, जो शादी के दौरान दूल्हा-दुल्हन और उनके परिवारों के बीच प्रेम और सौहार्द को दर्शाती है। इस रस्म में दूल्हा-दुल्हन एक-दूसरे को चावल और पान अर्पित करते हैं, जिसे समर्पण, प्रेम और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। चावल शुद्धता और समृद्धि का प्रतीक होता है, जबकि पान शुभता और खुशी का संकेत देता है। इस रस्म के दौरान परिवारजन भी आशीर्वाद स्वरूप दंपति पर चावल छिड़कते हैं और उनके सुखद वैवाहिक जीवन की कामना करते हैं। पहाड़ी संस्कृति (Pahadi Sanskriti) में यह रस्म आपसी संबंधों को मजबूत करने और दाम्पत्य जीवन में मिठास बनाए रखने का प्रतीक मानी जाती है।
शादी के बाद की रस्में (Post Wedding Rituals)
15. गौना रस्म (Bride’s First Visit to In-laws Home)
गौना रस्म पहाड़ी विवाह की एक महत्वपूर्ण और भावुक परंपरा होती है, जो विवाह के कुछ समय बाद संपन्न की जाती है। इस रस्म में दुल्हन अपने मायके से ससुराल विदा होकर अपने नए जीवन की पूरी तरह से शुरुआत करती है। परंपरागत रूप से, गौना विवाह (Gauna Vivah) के कुछ वर्षों बाद होता था, लेकिन अब यह शादी के तुरंत बाद भी किया जाने लगा है। इस रस्म के दौरान दुल्हन के माता-पिता, भाई-बहन और परिवारजन भावुक होकर उसे विदाई देते हैं, और ससुराल पक्ष की महिलाएँ वधू का स्वागत करती हैं। गौना का उद्देश्य दूल्हा-दुल्हन के वैवाहिक जीवन की पूर्णता और गृहस्थ जीवन की शुरुआत को दर्शाना होता है, और इसे सौभाग्य, समर्पण और नवजीवन का प्रतीक माना जाता है।
16. देहरी पूजन (Welcoming the Bride)
देहरी पूजन पहाड़ी विवाह की एक महत्वपूर्ण रस्म होती है, जो नवविवाहित दुल्हन के गृहप्रवेश से जुड़ी होती है। इस अनुष्ठान में दुल्हन जब पहली बार ससुराल के द्वार (देहरी) पर पहुँचती है, तो उसे चावल से भरे कलश को पैर से धीरे-धीरे आगे बढ़ाने के लिए कहा जाता है, जिससे घर में समृद्धि और सुख-शांति बनी रहे। द्वार पर हल्दी, कुमकुम और गंगाजल से देहरी का पूजन किया जाता है, और परिवार की महिलाएँ आरती उतारकर दुल्हन का स्वागत करती हैं। यह रस्म दर्शाती है कि नववधू अब परिवार की लक्ष्मी के रूप में गृहस्थ जीवन की शुरुआत कर रही है। देहरी पूजन का उद्देश्य नवदंपति के सुखमय और मंगलमय जीवन की कामना करना होता है, और इसे शुभता और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है।
17. घर की बड़ी बहू द्वारा आशीर्वाद
घर की बड़ी बहू द्वारा आशीर्वाद पहाड़ी विवाह की एक महत्वपूर्ण और सम्मानजनक रस्म होती है, जिसमें परिवार की सबसे बड़ी बहू (ज्येष्ठ बहू) नवविवाहित दुल्हन को आशीर्वाद देती है। जब दुल्हन गृहप्रवेश करती है, तो घर की बड़ी बहू उसे स्नेहपूर्वक स्वागत करती है, उसकी आरती उतारती है और उसे प्रेम व मार्गदर्शन प्रदान करती है। पहाड़ी शादी की रस्में परिवार में स्नेह, परंपरा और एकता को दर्शाती है, क्योंकि बड़ी बहू को परिवार की रीति-रिवाजों और परंपराओं का संरक्षक माना जाता है। वह दुल्हन को गृहस्थ जीवन की जिम्मेदारियों, पारिवारिक संस्कारों और परंपराओं से अवगत कराती है। यह रस्म दुल्हन को नए घर में अपनाने और परिवार के साथ घनिष्ठ संबंध बनाने का प्रतीक मानी जाती है।
18. पहली रसोई (Pahli Rasoi)
पहली रसोई, पहाड़ी विवाह की एक महत्वपूर्ण रस्म होती है, जिसमें नवविवाहित दुल्हन शादी के बाद पहली बार अपने ससुराल में खाना बनाती है। इसे गृहलक्ष्मी के आगमन और गृहस्थ जीवन की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है। आमतौर पर, दुल्हन मीठा व्यंजन जैसे खीर, हलवा या मीठी रोटी बनाती है, जिसे पूरे परिवार के साथ बांटा जाता है। परिवारजन इस भोजन को शुभ मानते हैं और दुल्हन को तोहफे और आशीर्वाद देते हैं। इस रस्म का उद्देश्य नववधू को परिवार के साथ घुलने-मिलने का अवसर देना और उसे घर की जिम्मेदारियों से परिचित कराना होता है। पहली रसोई को सौभाग्य, समृद्धि और पारिवारिक एकता का प्रतीक माना जाता है, जो नवविवाहित जीवन की सुखद शुरुआत को दर्शाती है।
19. नथ उतारने की रस्म (Nath Ceremony)
नथ उतारने की रस्म, हिमाचली शादी की एक महत्वपूर्ण और भावुक परंपरा होती है, जो दुल्हन के ससुराल में पूरी तरह अपनाए जाने का प्रतीक मानी जाती है। विवाह के दौरान दुल्हन शगुन और सुहाग के रूप में बड़ी और सुंदर नथ पहनती है, जिसे शादी के बाद घर की बड़ी बहू या सास द्वारा विधिवत उतारा जाता है। इस रस्म का उद्देश्य यह दर्शाना होता है कि दुल्हन अब पूरी तरह से इस परिवार का हिस्सा बन गई है और उसने अपने नए जीवन की जिम्मेदारियों को स्वीकार कर लिया है। नथ उतारने के बाद परिवार की महिलाएँ नववधू को आशीर्वाद और उपहार देती हैं, जिससे उसका नया जीवन मंगलमय और सुखद बना रहे। इस रस्म को स्वीकृति, प्रेम और अपनापन का प्रतीक माना जाता है।
20. पगफेरे की रस्म (Pagphera Rasm)
बेटी भेंट, उत्तराखंड की शादी की एक अत्यंत प्यारी और पारंपरिक रस्म होती है, जिसमें शादी के कुछ दिनों बाद दुल्हन पहली बार अपने मायके जाती है, जहाँ उसे मिठाई और उपहार दिए जाते हैं। जिसमें दूल्हे के परिवार द्वारा दुल्हन को विवाह के बाद उपहार दिया जाता है। यह उपहार आमतौर पर दुल्हन के माँ-बाप और परिवार की ओर से उसे आशीर्वाद के रूप में होता है। यह रस्म ससुराल और मायके के बीच रिश्ते को मजबूत करने का काम करती है और दुल्हन के नए जीवन के लिए शुभकामनाएं देती है। दुल्हन को दी जाने वाली यह भेंट अक्सर कुछ ऐतिहासिक या पारंपरिक चीजें होती हैं, जैसे किसी खास पोशाक, आभूषण या परिवार के हस्ताक्षर वाले सामान। इसे आशीर्वाद और प्रेम के प्रतीक के रूप में देखा जाता है, जिससे दुल्हन को उसकी नई जिंदगी में खुशियां और समृद्धि मिले।
पहाड़ी शादी की खासियतें (Unique Features of Pahadi Wedding in Uttarakhand)
- पारंपरिक पहाड़ी खानपान: झंगोरा की खीर, भट्ट की दाल, आलू के गुटके, सिड्डू आदि।
- पारंपरिक संगीत: ढोल-दमाऊं, रणसिंघा, हुड़का और लोकगीत।
- लोकनृत्य: झुमटा, छोलिया नृत्य और नाटी।
- पारंपरिक परिधान: दुल्हन के लिए घाघरा-चोली और पाड़ (गहना-पाड़), जबकि दूल्हे के लिए चूड़ीदार-कुर्ता या हिमाचली पगड़ी।
निष्कर्ष:
पहाड़ी विवाह (Pahadi Wedding Traditions) केवल एक सामाजिक आयोजन नहीं, बल्कि रीति-रिवाजों और परंपराओं का संगम होता है। इसमें हर रस्म प्रेम, आस्था और सांस्कृतिक धरोहर को संजोती है। यदि आप किसी पहाड़ी शादी में गए हैं या इसे करीब से देखा है, तो हमें अपने अनुभव कमेंट में जरूर बताएं!
Pahadi Wedding Traditions: अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
प्रश्न: उत्तराखंड में शादी कैसे होती है?
उत्तर: उत्तराखंड में विवाह पारंपरिक रीति-रिवाजों के अनुसार संपन्न होता है, जिसमें जातीय और सांस्कृतिक विविधता देखने को मिलती है। यहाँ गढ़वाली और कुमाऊंनी समुदायों की अलग-अलग शादी की परंपराएँ होती हैं, लेकिन मुख्य रस्में समान होती हैं। विवाह की प्रक्रिया में मंगनी (सगाई), हल्दी, मटकोर, बारात, कन्यादान, फेरे, मांग भराई, गौना जैसी रस्में शामिल होती हैं। धार्मिक रीति-रिवाजों के अलावा, कुछ क्षेत्रों में विशेष नृत्य और लोकगीत का भी आयोजन किया जाता है।
प्रश्न: हिमाचल में शादी कैसे होती है?
उत्तर: हिमाचल प्रदेश में विवाह पारंपरिक और सांस्कृतिक रस्मों के साथ संपन्न होते हैं। यहाँ ब्राह्मण, राजपूत, गुर्जर, और जनजातीय समुदायों के अनुसार विवाह पद्धतियाँ भिन्न होती हैं। शादी की मुख्य रस्में टिक्का (रोका), मटकोर, हल्दी, बारात, फेरे, मांग भराई और गौना होती हैं। कुछ क्षेत्रों में नाटी (लोकनृत्य) और पारंपरिक लोकगीतों का आयोजन भी होता है। जनजातीय क्षेत्रों में पोल्यू (कबीलों में शादी की रस्म) और घोटुल प्रथा जैसी अलग विवाह परंपराएँ भी देखने को मिलती हैं।
प्रश्न: उत्तराखंड में शादी के लिए अनुमति कैसे लें?
उत्तर: उत्तराखंड में विवाह करने के लिए कानूनी अनुमति के लिए निम्नलिखित प्रक्रियाओं का पालन करना आवश्यक है:
- धार्मिक विवाह: यदि आप पारंपरिक रीति-रिवाजों के अनुसार शादी कर रहे हैं, तो इसके लिए अलग से अनुमति की आवश्यकता नहीं होती।
- विशेष विवाह अधिनियम (Special Marriage Act): यदि आप अंतरजातीय या अंतरधार्मिक विवाह कर रहे हैं, तो आपको कोर्ट मैरिज के लिए रजिस्ट्रार ऑफिस में 30 दिन पहले नोटिस देना होगा।
- विवाह प्रमाण पत्र (Marriage Certificate): शादी को कानूनी मान्यता देने के लिए स्थानीय नगर पालिका या पंचायत से विवाह प्रमाण पत्र प्राप्त करना अनिवार्य होता है।
- अल्पसंख्यक या विशेष समुदाय की शादी: यदि आप उत्तराखंड के किसी विशेष जनजातीय समुदाय से हैं, तो आपको स्थानीय प्रशासन से अनुमति या प्रमाण पत्र लेना पड़ सकता है।
प्रश्न: क्या उत्तराखंड में बहुविवाह प्रतिबंधित है?
उत्तर: हाँ, उत्तराखंड में बहुविवाह (Polygamy) प्रतिबंधित है। भारत के हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (Hindu Marriage Act, 1955) के तहत एक व्यक्ति केवल एक विवाह कर सकता है, जब तक कि उसका जीवनसाथी जीवित है। बहुविवाह अवैध और दंडनीय अपराध है, और इसके लिए सात साल तक की सजा और जुर्माना भी हो सकता है। हालाँकि, कुछ विशेष जनजातीय समुदायों में पारंपरिक बहुविवाह प्रथाएँ पाई जाती हैं, लेकिन कानूनी रूप से इन्हें मान्यता प्राप्त नहीं है।
प्रश्न: उत्तराखंड में कोर्ट मैरिज कैसे करें?
उत्तर: उत्तराखंड में कोर्ट मैरिज करने के लिए विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत निम्नलिखित प्रक्रिया अपनाई जाती है:
- आवेदन पत्र भरें
- दस्तावेज़ प्रस्तुत करें
- आधार कार्ड, पैन कार्ड या वोटर आईडी (पहचान प्रमाण)
- जन्म प्रमाण पत्र (उम्र प्रमाण)
- निवास प्रमाण पत्र
- पासपोर्ट साइज फोटो (दोनों पक्षों की)
- विवाह हेतु सहमति पत्र (यदि लड़की 18 और लड़का 21 वर्ष का हो)
- 30 दिन की नोटिस अवधि
- तीन गवाहों की आवश्यकता
- शादी का पंजीकरण और प्रमाण पत्र
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