New Divorce Rule 2023: 2024 में भारत में तलाक लेने के नियमों में बदलाव किया गया है। अब आपसी सहमति से तलाक के लिए 6 महीने का इंतजार करने की आवश्यकता नहीं है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए एक फैसले के अनुसार, अगर दोनों पक्षों के बीच सुलह की कोई गुंजाइश नहीं है, तो वे बिना किसी इंतजार के तलाक के लिए आवेदन कर सकते हैं।
भारत में 2024 में तलाक के नियमों में बदलाव (Changes In Divorce Rules In 2023) हुआ है। सुप्रीम कोर्ट (Suprem Court) ने एक फैसले में कहा है कि आपसी सहमति से तलाक के लिए अब पति-पत्नी को 6 महीने अलग-अलग रहने की जरूरत नहीं है।
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इस फैसले से तलाक की प्रक्रिया में काफी तेजी आएगी। अब पति-पत्नी एक साथ फैमिली कोर्ट में आवेदन देकर तलाक ले सकते हैं। फैमिली कोर्ट (Family Court) दोनों पक्षों को सुलह के लिए 6 महीने का समय देगा। अगर इस दौरान सुलह नहीं हो पाती है तो फैमिली कोर्ट तलाक दे देगी।
यह फैसला उन पति-पत्नी के लिए राहत की बात है जो तलाक लेना चाहते हैं, लेकिन 6 महीने अलग-अलग रहने की स्थिति में नहीं हैं। इस फैसले से तलाक की प्रक्रिया (Process of Divorce) में काफी तेजी आएगी और पति-पत्नी जल्द से जल्द अलग हो सकेंगे।
तलाक के लिए आवेदन करते समय ध्यान रखने योग्य बातें
आवेदन के साथ दोनों पक्षों का हलफनामा लगाना जरूरी है:
इस हलफनामे में दोनों पक्षों को यह बताना होगा कि वे आपसी सहमति से तलाक लेना चाहते हैं।
आवेदन के साथ दोनों पक्षों के निवास प्रमाण पत्र और पहचान पत्र लगाना जरूरी है:
इन दस्तावेजों से यह पता चलेगा कि दोनों पक्ष भारत के नागरिक हैं और कहां रहते हैं।
आवेदन के साथ दोनों पक्षों के विवाह प्रमाण पत्र लगाना जरूरी है:
यह प्रमाण पत्र यह साबित करेगा कि दोनों पक्ष कानूनी रूप से विवाहित हैं।
क्या है तलाक के नये नियम 2023? (What Is The New Divorce Rule 2023?)
आइए अब तलाक के नये नियम 2023 (New Rule Of Divorce) को और अधिक विस्तार से समझते हैं:
6 महीने अलग-अलग रहने की जरूरत नहीं
पुराने नियमों के अनुसार, आपसी सहमति से तलाक के लिए पति-पत्नी को कम से कम एक साल शादीशुदा होना चाहिए और कम से कम 6 महीने अलग-अलग रहना चाहिए।
नए नियम के अनुसार, अब पति-पत्नी को तलाक के लिए 6 महीने अलग-अलग रहने की जरूरत नहीं है। अब दोनों पक्ष एक साथ फैमिली कोर्ट में आवेदन देकर तलाक ले सकते हैं।
फैमिली कोर्ट दोनों पक्षों को सुलह के लिए 6 महीने का समय देगा
फैमिली कोर्ट दोनों पक्षों को सुलह के लिए 6 महीने का समय देगा। अगर इस दौरान सुलह नहीं हो पाती है तो फैमिली कोर्ट तलाक दे देगी।
इसका मतलब है कि अगर पति-पत्नी तलाक के लिए गंभीर हैं तो उन्हें फैमिली कोर्ट में आवेदन करने के बाद 6 महीने तक इंतजार करना होगा। अगर इस दौरान दोनों पक्षों के बीच कोई सुलह नहीं होती है तो फैमिली कोर्ट तलाक दे देगी।
तलाक के प्रकार (Types of Divorce)
भारत में तलाक के मुख्य रूप से दो प्रकार हैं:
समझौते से तलाक (Divorce By Agreement):
इस प्रकार के तलाक में, दोनों पक्ष तलाक के लिए सहमत होते हैं। दोनों पक्ष तलाक के समझौते पर हस्ताक्षर करते हैं, जिसमें बच्चों की देखभाल, गुजारा भत्ता, और संपत्ति के बंटवारे के बारे में प्रावधान होते हैं।
समझौते से तलाक के नियम (Rules of Divorce By Agreement):
- सहमति: तलाक का प्रक्रियात्मक पहला कदम है दोनों पति-पत्नी की सहमति।
- तलाक प्रक्रिया: सहमति के बाद, तलाक प्रक्रिया आरंभ होती है जिसमें नियमित और स्पष्ट प्रक्रियाएं होती हैं।
- तलाक परंपरा: हिन्दू विवाद निवारण अधिनियम के तहत, हिन्दू विवादों की सुलझाने के लिए एक समझौता प्रक्रिया है।
- कानूनी सलाह: तलाक की स्थिति में कानूनी सलाह लेना सुनिश्चित करता है कि सभी कदम सही और विधिपूर्ण हों।
- अदालती प्रक्रिया: यदि समझौता होता है, तो तलाक प्रक्रिया को अदालत में स्वीकृत किया जा सकता है ताकि यह कानूनी रूप से बाधित हो।
विवादित तलाक/ एकतरफा तलाक (Disputed Divorce / Unilateral Divorce):
इस प्रकार के तलाक में, दोनों पक्ष तलाक के लिए सहमत नहीं होते हैं। एक पक्ष तलाक के लिए आवेदन करता है, और दूसरा पक्ष उस आवेदन का विरोध करता है। अदालत, तलाक के आवेदन पर सुनवाई करती है और तलाक देने या देने से इनकार करने का निर्णय लेती है।
विवादित तलाक/ एकतरफा तलाक के नियम (Rules For Disputed Divorce / Unilateral Divorce)
एकतरफा तलाक (Unilateral Divorce), जिसे विवादित तलाक भी कहा जाता है, वह तलाक है जिसमें एक पक्ष तलाक के लिए आवेदन करता है, और दूसरा पक्ष उस आवेदन का विरोध करता है। भारत में, एकतरफा तलाक के लिए, एक पक्ष को तलाक के लिए आवेदन करते समय तलाक के कारणों का उल्लेख करना होगा। तलाक के कारणों में निम्नलिखित शामिल हो सकते हैं:
- विश्वासघात
- दुर्व्यवहार
- मानसिक बीमारी
- शारीरिक बीमारी
- अलगाव
- बच्चे के जन्म के बाद
तलाक के लिए आवेदन करने के बाद, अदालत दंपति को सुलह के लिए प्रयास करने के लिए कह सकती है। यदि सुलह सफल नहीं होती है, तो अदालत तलाक के आवेदन पर सुनवाई करती है। अदालत तलाक देने या देने से इनकार करने का निर्णय लेती है।
तलाक का नया नियम किन लोगों के लिए राहत की बात है? (For Whom Is The New Rule Of Divorce A Relief?)
- यह फैसला उन पति-पत्नी के लिए राहत की बात है जो तलाक लेना चाहते हैं, लेकिन 6 महीने अलग-अलग रहने की स्थिति में नहीं हैं।
- इस फैसले से उन पति-पत्नी को भी राहत मिलेगी जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं और तलाक की प्रक्रिया में अधिक खर्च नहीं उठा सकते हैं।
भारत में तलाक लेने के लिए जरूरी डॉक्यूमेंट (Documents Required To Get Divorce In India)
भारत में तलाक लेने के लिए जरूरी दस्तावेज निम्नलिखित हैं:
- तलाक के लिए आवेदन
- तलाक के समझौता (यदि समझौते से तलाक लिया जा रहा है)
- पहचान पत्र
- पता प्रमाण
- विवाह प्रमाण पत्र
तलाक के लिए आवेदन
तलाक के लिए आवेदन एक कानूनी दस्तावेज है जिसे तलाक के लिए अदालत में दायर किया जाता है। आवेदन में निम्नलिखित जानकारी शामिल होनी चाहिए:
- दंपति के नाम और पता
- विवाह की तिथि
- तलाक के कारण
तलाक का समझौता
तलाक का समझौता एक कानूनी दस्तावेज है जिसमें तलाक के बाद बच्चों की देखभाल, गुजारा भत्ता, और संपत्ति के बंटवारे के बारे में प्रावधान होते हैं। समझौता दोनों पक्षों द्वारा हस्ताक्षरित होना चाहिए।
पहचान पत्र
पहचान पत्र में आधार कार्ड, पैन कार्ड, या मतदाता पहचान पत्र शामिल हो सकते हैं।
पता प्रमाण
पता प्रमाण में बिजली बिल, पानी का बिल, या बैंक स्टेटमेंट शामिल हो सकते हैं।
विवाह प्रमाण पत्र
विवाह प्रमाण पत्र एक कानूनी दस्तावेज है जो विवाह की वैधता को प्रमाणित करता है।
भारत में पत्नी किन आधार पर तलाक ले सकती हैं? (On What Grounds Can A Wife Take Divorce In India?)
भारत में पत्नी तलाक लेने के लिए निम्नलिखित आधारों पर आवेदन कर सकती है:
- व्यभिचार (Adultery) – यदि पति किसी अन्य महिला के साथ यौन संबंध रखता है, तो पत्नी तलाक के लिए आवेदन कर सकती है।
- क्रूरता (Cruelty) – यदि पति पत्नी के साथ शारीरिक या मानसिक रूप से दुर्व्यवहार करता है, तो पत्नी तलाक के लिए आवेदन कर सकती है।
- परित्याग (Abandonment) – यदि पति पत्नी को बिना किसी उचित कारण के छोड़ देता है, तो पत्नी तलाक के लिए आवेदन कर सकती है।
- धर्मांतरण (Religious Conversion) – यदि पति धर्म परिवर्तन करता है, तो पत्नी तलाक के लिए आवेदन कर सकती है।
- पागलपन (Madness) – यदि पति पागल हो जाता है, तो पत्नी तलाक के लिए आवेदन कर सकती है।
- कुष्ठ रोग (Leprosy) – यदि पति कुष्ठ रोग से पीड़ित हो जाता है, तो पत्नी तलाक के लिए आवेदन कर सकती है।
- यौन रोग (Venereal Disease) – यदि पति किसी यौन संचारित रोग से पीड़ित हो जाता है, तो पत्नी तलाक के लिए आवेदन कर सकती है।
- सन्यासी बनना (To Become A Monk) – यदि पति संन्यासी बन जाता है, तो पत्नी तलाक के लिए आवेदन कर सकती है।
इन आधारों के अलावा, पत्नी तलाक के लिए तर्क दे सकती है कि विवाह का अस्तित्व समाप्त हो गया है। उदाहरण के लिए, यदि पति और पत्नी एक दूसरे से कई वर्षों से अलग रह रहे हैं, तो पत्नी तलाक के लिए आवेदन कर सकती है।
यदि पत्नी तलाक के लिए आवेदन करती है, तो अदालत तलाक देने या देने से इनकार करने का निर्णय लेती है। अदालत तलाक देने का निर्णय तलाक के कारणों, दंपति के बीच विवाह के संबंधों, और बच्चों की भलाई पर विचार करके लेती है।
भारत में तलाक लेने के कारण (Reasons For Divorce in India)
भारत में तलाक के कई कारण हैं। इनमें से कुछ सबसे आम कारण निम्नलिखित हैं:
व्यभिचार-
विश्वासघात तलाक का सबसे आम कारण है। यदि कोई पति या पत्नी अपने जीवनसाथी के साथ विश्वासघात करता है, तो यह विवाह को तोड़ने का एक प्रमुख कारण बन सकता है।
क्रूरता-
शारीरिक या मानसिक दुर्व्यवहार भी तलाक का एक आम कारण है। यदि कोई पति या पत्नी अपने जीवनसाथी के साथ शारीरिक या मानसिक रूप से दुर्व्यवहार करता है, तो यह विवाह को असहनीय बना सकता है।
अलगाव-
कुछ मामलों में, पति और पत्नी एक दूसरे से अलग हो जाते हैं और फिर से एक साथ नहीं आते हैं। इस स्थिति को अलगाव कहा जाता है। यदि अलगाव लंबे समय तक चलता है, तो यह तलाक का कारण बन सकता है।
आर्थिक समस्याएं-
आर्थिक समस्याएं भी तलाक का एक कारण हो सकती हैं। यदि कोई पति या पत्नी अपने जीवनसाथी के साथ आर्थिक समस्याओं को सुलझाने में सक्षम नहीं होता है, तो यह विवाह को तोड़ने का कारण बन सकता है।
कामकाजी महिलाओं की बढ़ती संख्या-
आजकल, महिलाएं पुरुषों के समान अधिकारों और अवसरों का आनंद लेती हैं। वे काम करती हैं, अपनी कमाई करती हैं, और अपना जीवन खुद चुनती हैं। इस कारण से, कुछ महिलाएं तलाक लेने के लिए अधिक स्वतंत्र महसूस करती हैं।
इनके अलावा, तलाक के अन्य कारणों में शामिल हैं:
- धर्म या जाति में अंतर
- बच्चों की उपस्थिति या अनुपस्थिति
- सामाजिक दबाव
भारत में तलाक की दर (Divorce Rate In India)
भारत में तलाक की दर (Divorce Rate In India) लगातार बढ़ रही है। 2022 में, भारत में प्रति 1,000 विवाहों में से 15.2 तलाक हुए। यह 2021 की तुलना में 1.5% की वृद्धि है। तलाक की बढ़ती दर कई कारकों का परिणाम है, जिनमें आर्थिक विकास, महिला सशक्तिकरण, और सामाजिक परिवर्तन शामिल हैं।
भारत में तलाक लेने की नई प्रक्रिया (New Procedure For Divorce in India)
नई तलाक प्रक्रिया 2023 (New Divorce Procedure 2023):
भारत में तलाक की प्रक्रिया को सरल और सुलभ बनाने के लिए, सुप्रीम कोर्ट ने 2023 में तलाक की नई प्रक्रिया की घोषणा (New Divorce Procedure Announced in 2023) की। इस नई प्रक्रिया के तहत, आपसी सहमति से तलाक लेने वाले पति-पत्नी को अब 6 महीने तक अलग रहने की आवश्यकता नहीं है। वे सीधे ही कोर्ट में तलाक (Divorce In Court) के लिए आवेदन कर सकते हैं।
नई प्रक्रिया के तहत, आपसी सहमति से तलाक लेने के लिए पति-पत्नी को निम्नलिखित दस्तावेज कोर्ट में जमा करने होंगे:
- विवाह प्रमाण पत्र
- पहचान प्रमाण पत्र
- निवास प्रमाण पत्र
- गुजारा भत्ता और बाल कल्याण से संबंधित दस्तावेज (यदि आवश्यक हो)
कोर्ट द्वारा आवेदन की सुनवाई के बाद, यदि पति-पत्नी के बीच कोई विवाद नहीं है, तो कोर्ट तलाक की मंजूरी दे सकता है।
आवेदन
नई प्रक्रिया के तहत, आपसी सहमति से तलाक के लिए आवेदन संबंधित क्षेत्रीय अदालत में किया जा सकता है। आवेदन फॉर्म अदालत से प्राप्त किया जा सकता है या ऑनलाइन भी डाउनलोड किया जा सकता है। आवेदन फॉर्म भरते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए:
- आवेदन फॉर्म में सभी आवश्यक जानकारी सही-सही भरनी चाहिए।
- आवेदन फॉर्म में सभी आवश्यक दस्तावेज लगाने चाहिए।
- आवेदन फॉर्म में दोनों पति-पत्नी के हस्ताक्षर करने चाहिए।
भारत में तलाक लेने के अधिनियम (Divorce Act in India)
भारत में तलाक लेने के लिए निम्नलिखित अधिनियम लागू हैं:
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (Hindu Marriage Act, 1955):
यह अधिनियम हिंदुओं, सिखों, जैनों और बौद्धों के बीच विवाह और तलाक से संबंधित मामलों को नियंत्रित करता है।
मुस्लिम पर्सनल लॉ (शादी का विघटन) अधिनियम, 1939 (Muslim Personal Law (Dissolution of Marriage) Act, 1939):
यह अधिनियम मुसलमानों के बीच विवाह और तलाक से संबंधित मामलों को नियंत्रित करता है।
ईसाई विवाह विघटन अधिनियम, 1869 (Dissolution of Christian Marriage Act, 1869):
यह अधिनियम ईसाइयों के बीच विवाह और तलाक से संबंधित मामलों को नियंत्रित करता है।
पारसी विवाह और तलाक अधिनियम, 1865 (Parsi Marriage and Divorce Act, 1865):
यह अधिनियम पारसियों के बीच विवाह और तलाक से संबंधित मामलों को नियंत्रित करता है।
स्पेशल मैरिज एक्ट, 1954 (Special Marriage Act, 1954):
यह अधिनियम हिंदुओं, सिखों, जैनों, बौद्धों, ईसाइयों, पारसियों और अन्य लोगों के बीच विवाह और तलाक से संबंधित मामलों को नियंत्रित करता है।
नए नियम से तलाक की प्रक्रिया में कितनी तेजी आएगी?
नए नियम से तलाक की प्रक्रिया में काफी तेजी आएगी। पहले के नियमों के अनुसार, तलाक की प्रक्रिया में कम से कम 1 साल का समय लगता था। नए नियम के अनुसार, तलाक की प्रक्रिया को कम से कम 6 महीने में पूरा किया जा सकता है।
इस फैसले से पति-पत्नी जल्द से जल्द अलग हो सकेंगे और अपनी नई जिंदगी शुरू कर सकेंगे।
निष्कर्ष:
नया तलाक नियम (New Divorce Rule) से पति-पत्नी को तलाक लेने में आसानी होगी। अब उन्हें 6 महीने तक अलग रहने की आवश्यकता नहीं होगी। वे सीधे ही कोर्ट में तलाक के लिए आवेदन कर सकते हैं और यदि उनके बीच कोई विवाद नहीं है, तो कोर्ट तलाक की मंजूरी दे सकता है।
New Divorce Rule: अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
प्रश्र: 2023 में तलाक के लिए नया कानून क्या है?
उत्तर: 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने एक नई तलाक प्रक्रिया की घोषणा की है। इस नई प्रक्रिया के तहत, आपसी सहमति से तलाक लेने वाले पति-पत्नी को अब 6 महीने तक अलग रहने की आवश्यकता नहीं है। वे सीधे ही कोर्ट में तलाक के लिए आवेदन कर सकते हैं।
प्रश्र: डिवोर्स कितने दिन में मिलता है?
उत्तर: तलाक की प्रक्रिया में लगने वाला समय तलाक के आधार और दोनों पक्षों के बीच समझौते पर निर्भर करता है। आमतौर पर, तलाक की प्रक्रिया में 6 महीने से लेकर 1 साल तक का समय लग सकता है।
प्रश्र: तलाक के बाद पत्नी को क्या मिलता है?
उत्तर: तलाक के बाद पत्नी को निम्नलिखित चीजें मिल सकती हैं:
- गुजारा भत्ता (Alimony): तलाक के बाद, पत्नी को पति से गुजारा भत्ता मिल सकता है। गुजारा भत्ता की राशि तलाक के आधार, दोनों पक्षों की आय और अन्य कारकों पर निर्भर करती है।
- बच्चों की देखभाल (Custody): तलाक के बाद, बच्चों की देखभाल का अधिकार पति या पत्नी को दिया जा सकता है।
- बच्चों का भरण-पोषण (Maintenance): तलाक के बाद, बच्चों का भरण-पोषण पति या पत्नी को देना पड़ सकता है।
प्रश्र: क्या बिना कोर्ट के तलाक हो सकता है?
उत्तर: भारत में तलाक के लिए कोर्ट की मंजूरी आवश्यक है। बिना कोर्ट के तलाक नहीं हो सकता है।
प्रश्र: तलाक का केस कितने साल चलता है?
उत्तर: तलाक का केस तलाक के आधार और दोनों पक्षों के बीच समझौते पर निर्भर करता है। आमतौर पर, तलाक का केस 6 महीने से लेकर 1 साल तक चल सकता है।
प्रश्र: अगर पति तलाक चाहता है और पत्नी नहीं चाहती तो क्या करें?
उत्तर: अगर पति तलाक चाहता है और पत्नी नहीं चाहती है, तो पति को कोर्ट में तलाक के लिए आवेदन करना होगा। कोर्ट द्वारा आवेदन की सुनवाई के बाद, यदि तलाक के लिए आधार सही पाया जाता है, तो कोर्ट तलाक की मंजूरी दे सकती है।
प्रश्र: एकतरफा तलाक कितने समय लगता है?
उत्तर: एकतरफा तलाक में तलाक के आधार और दोनों पक्षों के बीच समझौते पर निर्भर करता है। आमतौर पर, एकतरफा तलाक में 1 साल से लेकर 2 साल तक का समय लग सकता है।
प्रश्र: तलाक लेने में कितना खर्चा आता है?
उत्तर: तलाक लेने में लगने वाला खर्चा तलाक के आधार और दोनों पक्षों के बीच समझौते पर निर्भर करता है। आमतौर पर, तलाक लेने में 1 लाख से लेकर 2 लाख रुपये तक का खर्चा आ सकता है।
प्रश्र: शादी के कितने दिन बाद तलाक ले सकते हैं?
उत्तर: भारतीय कानून के अनुसार, शादी के किसी भी दिन तलाक लिया जा सकता है।
प्रश्र: तलाक पेपर कहां मिलता है?
उत्तर: तलाक पेपर कोर्ट से मिलता है। कोर्ट द्वारा तलाक की मंजूरी देने के बाद, कोर्ट तलाक पेपर जारी करता है।
प्रश्र: अगर पति तलाक न दे तो क्या करें?
उत्तर: अगर पति तलाक न दे, तो पत्नी को कोर्ट में तलाक के लिए आवेदन करना होगा। कोर्ट द्वारा आवेदन की सुनवाई के बाद, यदि तलाक के लिए आधार सही पाया जाता है, तो कोर्ट तलाक की मंजूरी दे सकती है।
प्रश्र: पुरुष तलाक कैसे लें?
उत्तर: पुरुष तलाक लेने के लिए, उन्हें कोर्ट में तलाक के लिए आवेदन करना होगा। आवेदन के साथ निम्नलिखित दस्तावेज लगाने होंगे:
- विवाह प्रमाण पत्र
- पहचान प्रमाण पत्र
- निवास प्रमाण पत्र
- तलाक के आधार से संबंधित दस्तावेज (यदि आवश्यक हो)
अदालत द्वारा आवेदन की सुनवाई के बाद, यदि तलाक के लिए आधार सही पाया जाता है, तो अदालत तलाक की मंजूरी दे सकती है।
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