Indian Christian Marriage Act: भारत में ईसाई विवाह और तलाक का क्या कानून है?

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Indian Christian Marriage Act:

Indian Christian Marriage Act: भारत में रहने वाले ईसाइयों के विवाह और तलाक को नियंत्रित करने वाला कानून “भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम, 1872” है। यह लेख इस अधिनियम के मुख्य प्रावधानों, विवाह की शर्तों, तलाक के आधारों और कानूनी प्रक्रियाओं का विस्तृत विवरण प्रदान करता है।

विदेशी विवाह का कानून क्या है?

Indian Christian Marriage Act:

तलाक विवाह के कानूनी बंधनों से मुक्त होने का एक महत्वपूर्ण साधन है। “तलाक” शब्द लैटिन शब्द “डिवोर्टम” से उत्पन्न हुआ है, जिसका मतलब है “अलग होना” या “विभाजित होना”। भारत में तलाक की प्रथा को विभिन्न व्यक्तिगत कानूनों द्वारा सदियों से संचालित और निर्देशित किया गया है।

भारत में ईसाइयों के विवाह और तलाक के प्रबंधन के लिए प्रमुख कानूनी ढांचे Indian Christian Marriage Act, 1872 और Indian Divorce Act, 1869 हैं। इसके अतिरिक्त, ईसाई जोड़े Special Marriage Act, 1954 के तहत भी विवाह कर सकते हैं। आइए इन कानूनों को और विस्तृत रूप में समझते हैं।

भारत में ईसाइयों के बीच विवाह और तलाक से संबंधित कानून (Christian Marriage and Divorce Laws in India)

Indian Christian Marriage Act

भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम, 1872 क्या है? (What is Indian Christian Marriage Act, 1872?)

भारतीय क्रिस्टन विवाह अधिनियम, 1872, भारत में रहने वाले ईसाइयों के विवाह (Christian Marriage) को नियंत्रित करने वाला एक महत्वपूर्ण कानून है। यह अधिनियम 18 जुलाई, 1872 को लागू हुआ था और पूरे भारत में लागू होता है, कुछ अपवादों को छोड़कर (जैसे कोचीन, मणिपुर, जम्मू और कश्मीर)।

भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम, 1872 (Indian Christian Marriage Act, 1872) के अंतर्गत ईसाई विवाह के लिए आवश्यक शर्तें और प्रक्रिया निम्नलिखित हैं:

  1. विवाह की आयु और सहमति

  • विवाह की आयु:
    • पुरुष: न्यूनतम 21 वर्ष
    • महिला: न्यूनतम 18 वर्ष
  • सहमति:
    • विवाह के लिए दोनों पक्षों की स्वतंत्र सहमति आवश्यक है।
    • सहमति किसी भी प्रकार के दबाव, धोखाधड़ी, या मानसिक अस्वस्थता के तहत नहीं होनी चाहिए।

2. विवाह पंजीकरण

  • विवाह पंजीकरण:
    • विवाह चर्च में पादरी या किसी आधिकारिक व्यक्ति (Marriage Registrar) द्वारा किया जाता है।
    • Marriage Registrar विवाह को पंजीकृत करता है और विवाह प्रमाणपत्र जारी करता है।

3. घोषणा (Banns)

  • घोषणा (Banns):
    • विवाह से पहले सार्वजनिक घोषणा (Banns) तीन लगातार रविवार को चर्च में की जाती है, जहां दोनों पक्षों के नियमित रूप से आने की संभावना होती है।
    • इस घोषणा का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि विवाह में कोई कानूनी बाधा नहीं है।
    • विशेष परिस्थितियों में, Marriage Registrar के सामने ‘Notice of Intended Marriage’ प्रस्तुत की जा सकती है, जिससे सार्वजनिक घोषणा की आवश्यकता समाप्त हो जाती है।

4. विवाह समारोह

  • विवाह समारोह:
    • विवाह चर्च में पादरी द्वारा या Marriage Registrar के सामने आयोजित किया जाता है।
    • इस समारोह के दौरान, दोनों पक्षों को एक दूसरे को पति-पत्नी के रूप में स्वीकार करना होता है और गवाहों के सामने विवाह प्रमाणपत्र पर हस्ताक्षर करना होता है।

भारतीय तलाक अधिनियम, 1869 क्या है? (What Is Indian Divorce Act, 1869)

भारतीय तलाक अधिनियम, 1869, भारत में विवाह विच्छेद से संबंधित कानूनों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह अधिनियम 1 अप्रैल 1869 को लागू हुआ था और पूरे भारत में लागू है, कुछ अपवादों को छोड़कर (जैसे गोवा, दमन और दीव)। यह अधिनियम ईसाइयों सहित सभी धर्मों के लोगों पर लागू होता है।

Indian Divorce Act, 1869 ईसाई विवाहों के विघटन (तलाक) के लिए कानूनी प्रक्रिया और आधार (Christian Marriage Divorce Procedure in India) प्रदान करता है। इसके प्रमुख बिंदु निम्नलिखित हैं:

  1. तलाक के आधार

  • तलाक के आधार:
    •  व्यभिचार (Adultery): पति या पत्नी का विवाहेतर संबंध।
    •  अत्याचार (Cruelty): शारीरिक या मानसिक अत्याचार।
    • परित्याग (Desertion): एक साथी का बिना किसी उचित कारण के दूसरे साथी को दो साल या अधिक समय के लिए छोड़ देना।
    • मानसिक विकार (Mental Disorder): साथी का मानसिक रूप से अस्वस्थ होना।
    • धर्म परिवर्तन (Conversion): एक साथी का ईसाई धर्म छोड़कर अन्य धर्म अपनाना।

2. तलाक की याचिका

  • तलाक की याचिका:
    • संबंधित जिला न्यायालय में तलाक की याचिका दाखिल की जाती है।
    • अदालत तलाक के लिए उपयुक्त आधारों की जांच करती है और प्रमाणित करती है।
    • उचित प्रमाण और गवाहों की सुनवाई के बाद अदालत तलाक का आदेश जारी करती है।

3. तलाक के बाद

  • तलाक के बाद:
    • अदालत बच्चे की कस्टडी, संपत्ति का बंटवारा, और आर्थिक सहायता (maintenance) का निर्णय करती है।
    • तलाक के बाद, दोनों पक्ष पुनर्विवाह करने के लिए स्वतंत्र होते हैं।

Special Marriage Act, 1954

ईसाई जोड़े Special Marriage Act, 1954 के तहत भी विवाह कर सकते हैं। यह अधिनियम धर्मनिरपेक्ष विवाहों के लिए है और किसी विशेष धर्म के अनुसार नहीं है:

  1. विवाह की शर्तें

  • विवाह की शर्तें:
    • दोनों पक्षों की सहमति।
    • पुरुष की न्यूनतम आयु 21 वर्ष और महिला की 18 वर्ष।
    • किसी भी पक्ष का विवाह पहले से अस्तित्व में नहीं होना चाहिए।

2. घोषणा और पंजीकरण

  • घोषणा और पंजीकरण:
    • विवाह से पहले Marriage Registrar के सामने 30 दिन की ‘Notice of Intended Marriage’ प्रस्तुत की जाती है।
    • इस 30 दिन की अवधि के दौरान किसी भी आपत्ति को Marriage Registrar द्वारा सुना और निर्णय लिया जाता है।
    • विवाह की पंजीकरण Marriage Registrar के कार्यालय में की जाती है।

3. तलाक की प्रक्रिया (Christian Marriage Divorce Procedure in India)

Indian Divorce Act, 1869 के तहत तलाक की प्रक्रिया (Divorce Under Christian Law) में निम्नलिखित चरण शामिल हैं:

  • याचिका दायर करना:
    • तलाक की याचिका संबंधित जिला न्यायालय में दायर की जाती है।
    • याचिका में तलाक के आधारों का स्पष्ट उल्लेख किया जाता है।
  • अदालत में सुनवाई:
    • अदालत याचिका की सुनवाई करती है और दोनों पक्षों के बयान सुनती है।
    • प्रमाण और गवाहों के आधार पर अदालत तलाक के निर्णय पर पहुंचती है।
  • निर्णय और आदेश:
    • अदालत तलाक के आदेश जारी करती है यदि याचिका में दिए गए आधार प्रमाणित होते हैं।
    • अदालत संपत्ति का बंटवारा, बच्चे की कस्टडी और आर्थिक सहायता का निर्णय भी करती है।

निष्कर्ष:

भारत में ईसाइयों के विवाह और तलाक के प्रबंधन के लिए Indian Christian Marriage Act, 1872 और Indian Divorce Act, 1869 महत्वपूर्ण कानूनी ढांचे हैं। ये कानून सुनिश्चित करते हैं कि विवाह और तलाक की प्रक्रिया सुव्यवस्थित और न्यायसंगत हो। Special Marriage Act, 1954 धर्मनिरपेक्ष विवाह के लिए एक महत्वपूर्ण विकल्प प्रदान करता है, जो किसी भी धर्म के व्यक्तियों के लिए उपलब्ध है।

ईसाई विवाह और तलाक (Christian Marriage and Divorce) के मामलों में, संबंधित पक्षों को उचित कानूनी सलाह लेना आवश्यक है ताकि वे अपने अधिकारों और कर्तव्यों को अच्छी तरह से समझ सकें। विभिन्न राज्यों में स्थानीय नियम और प्रथाएं भी हो सकती हैं जो इन कानूनों के अनुपालन में भिन्न हो सकती हैं, इसलिए एक योग्य कानूनी विशेषज्ञ से परामर्श करना हमेशा फायदेमंद होता है।

Indian Christian Marriage Act: अक्सर पूछे जाने वाले सवाल 

प्रश्र: भारतीय क्रिश्चियन विवाह अधिनियम कब पारित हुआ?

उत्तर: भारतीय क्रिश्चियन विवाह अधिनियम, 1872 को 18 जुलाई, 1872 को पारित किया गया था। यह पूरे भारत में लागू होता है, कुछ अपवादों को छोड़कर (जैसे गोवा, दमन और दीव, लक्षद्वीप)।

प्रश्र: ईसाई धर्म में कितनी शादी कर सकते हैं?

उत्तर: ईसाई धर्म में, एक व्यक्ति केवल एक बार विवाहित हो सकता है। एक पति या पत्नी की मृत्यु के बाद, जीवित साथी को फिर से शादी करने की अनुमति है।

प्रश्र: ईसाई धर्म में तलाक कैसे होता है?

उत्तर: ईसाई धर्म में, तलाक के लिए विभिन्न आधार हो सकते हैं, जो विभिन्न ईसाई संप्रदायों के अनुसार भिन्न हो सकते हैं। कुछ सामान्य आधारों में क्रूरता, व्यभिचार, त्याग, मानसिक बीमारी और आपसी सहमति शामिल हैं।

प्रश्र: क्या भारतीय तलाक अधिनियम ईसाइयों पर लागू होता है?

उत्तर: हाँ, भारतीय तलाक अधिनियम, 1869 ईसाइयों सहित सभी धर्मों के लोगों पर लागू होता है। यह अधिनियम तलाक के लिए कानूनी ढांचा प्रदान करता है, जिसमें आधार, प्रक्रिया और गुजारा भत्ता शामिल हैं।

प्रश्र: ईसाई कब तलाक दे सकते हैं?

उत्तर: ईसाई तलाक के लिए उपरोक्त उल्लिखित आधारों में से किसी एक पर तलाक के लिए याचिका दायर कर सकते हैं। याचिका संबंधित पारिवारिक अदालत में दायर की जाती है और अदालत सबूतों का मूल्यांकन करने और तलाक देने का निर्णय लेने के बाद तलाक डिक्री पारित करती है।

प्रश्र: भारत में ईसाई विवाह कब लागू हुआ?

उत्तर: भारतीय क्रिश्चियन विवाह अधिनियम, 1872 को 18 जुलाई, 1872 को लागू किया गया था।

प्रश्र: ईसाई के लिए तलाक अधिनियम क्या है?

उत्तर: ईसाईयों के लिए तलाक से संबंधित कानूनों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है:

धार्मिक कानून: विभिन्न ईसाई संप्रदायों के अपने धार्मिक कानून होते हैं जो तलाक के लिए आधार और प्रक्रिया को निर्धारित करते हैं।

नागरिक कानून: भारतीय तलाक अधिनियम, 1869 सभी धर्मों के लोगों पर लागू होता है और तलाक के लिए कानूनी ढांचा प्रदान करता है, जिसमें आधार, प्रक्रिया और गुजारा भत्ता शामिल हैं।

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