Hindu and Muslim Divorce Rate: किस धर्म में तलाक सबसे ज्यादा होते हैं?

0
373
Hindu and Muslim Divorce Rate

Hindu and Muslim Divorce Rate: भारत में हिंदू और मुस्लिम तलाक दर क्या है? हिंदू और मुस्लिम धर्मों में तलाक के कारण क्या हैं? इस लेख में इन सवालों के जवाब दिए गए हैं।

शादीशुदा पुरुष की क्या पहचान है?

Hindu and Muslim Divorce Rate:

भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है, लेकिन यहां कई धर्मों के लोग रहते हैं। इनमें हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, सिख और अन्य धर्मों के लोग शामिल हैं। भारत में तलाक की दर भी अलग-अलग धर्मों में अलग-अलग होती है।

तलाक की परिभाषा (Definition of Divorce/ Talaq)

जनगणना के आंकड़ों में तलाक की परिभाषा को स्पष्ट रूप से नहीं बताया गया है। संभव है कि अलग रहने वाले जोड़ों को भी तलाकशुदा माना गया हो। इस कारण से, आंकड़ों में तलाक की दरों को थोड़ा अधिक या कम दिखाया जा सकता है।

हिंदू और मुस्लिम में तलाक की दरों की तुलना (Divorce Rate of Hindu and Muslim in India)

2011 की जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में हिंदुओं में तलाक का प्रतिशत 5.5 है, जबकि मुसलमानों में यह 4.8 है। इन आंकड़ों में तलाक के अलावा अलग रहने वाले जोड़ों को भी शामिल किया गया है। अगर केवल तलाक के मामलों पर गौर करें तो 2011 में भारत में मुस्लिम महिलाओं में तलाक का प्रतिशत 3.4 था, जबकि हिंदू महिलाओं में यह 2.7 था।

इस तरह, दोनों धर्मों में तलाक की दरों में ज्यादा अंतर नहीं है। हालांकि, यह ध्यान देने वाली बात है कि मुस्लिम समुदाय में तलाक की प्रक्रिया हिंदू समुदाय की तुलना में अपेक्षाकृत आसान है। मुस्लिम पुरुष तीन बार तलाक कहकर अपनी पत्नी को तलाक दे सकते हैं, जबकि हिंदू पुरुषों को तलाक के लिए अदालत की मंजूरी लेनी पड़ती है। इस कारण से, मुस्लिम समुदाय में तलाक की दरें थोड़ी अधिक हो सकती हैं।

हाल ही में, भारत सरकार ने तीन तलाक को अवैध कर दिया है। इससे मुस्लिम समुदाय में तलाक की दरों में कमी आने की उम्मीद है।

Hindu Divorce Rate:

हिंदू धर्म में तलाक की दर बढ़ रही है। इसकी कई वजहें हैं, जिनमें आर्थिक समस्याएं, सामाजिक बदलाव और शिक्षा का स्तर शामिल हैं। हिंदू समाज में तलाक को आज भी एक कलंक माना जाता है। इस वजह से कई महिलाएं तलाक के बाद अपने परिवार और समाज से अलग हो जाती हैं।

Muslim Divorce Rate:

मुस्लिम धर्म में तलाक की दर हिंदू धर्म से अधिक है। इसकी कई वजहें हैं, जिनमें तीन तलाक का प्रावधान, महिलाओं की कम सामाजिक स्थिति और आर्थिक समस्याएं शामिल हैं।

तीन तलाक का प्रावधान:

मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत, एक मुस्लिम पुरुष तीन बार “तलाक” कहकर अपनी पत्नी को तुरंत तलाक दे सकता है। यह प्रावधान महिलाओं के लिए बहुत ही हानिकारक है। यह महिलाओं को बिना किसी अधिकार के तलाक दे सकता है।

तलाक की प्रक्रिया (Process of Divorce)

भारतीय कानून में तलाक के लिए कई अलग-अलग प्रावधान हैं। हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत, तलाक के लिए पति और पत्नी दोनों को अदालत में अर्जी देनी होती है। अदालत तलाक की मंजूरी तभी देती है जब यह साबित हो जाए कि पति और पत्नी के बीच वैवाहिक जीवन संभव नहीं है।

मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) ऐक्ट, 1937 के तहत, मुस्लिम पुरुष तीन बार तलाक कहकर अपनी पत्नी को तलाक दे सकते हैं। इस प्रक्रिया को “तलाक-तलाक-तलाक” कहा जाता है। मुस्लिम महिलाओं को तलाक के लिए अदालत में अर्जी देनी होती है।

मुस्लिम समुदाय में तलाक की प्रक्रिया हिंदू समुदाय की तुलना में अपेक्षाकृत आसान है। इस कारण से, मुस्लिम समुदाय में तलाक की दरें थोड़ी अधिक हो सकती हैं।

तलाक के कारण (Reasons of Divorce)

  • वैवाहिक विवाद:

वैवाहिक विवाद तलाक का सबसे आम कारण है। इन विवादों में आर्थिक समस्याएं, परिवार के साथ संबंधों में समस्याएं, पति-पत्नी के बीच विश्वास की कमी, और हिंसा आदि शामिल हो सकते हैं।

  • बहुविवाह:

बहुविवाह भी तलाक का एक कारण हो सकता है। जब एक व्यक्ति दो से अधिक पत्नियों से शादी करता है, तो उसके परिवार में तनाव और संघर्ष बढ़ सकता है। इससे तलाक की संभावना बढ़ जाती है।

  • शैक्षिक और आर्थिक असमानता:

शैक्षिक और आर्थिक असमानता भी तलाक का एक कारण हो सकता है। जब पति और पत्नी की शिक्षा और आर्थिक स्तर में बहुत अंतर होता है, तो उनके बीच मतभेद होने की संभावना अधिक होती है। इससे तलाक की संभावना बढ़ जाती है।

  • सामाजिक और धार्मिक दबाव:

सामाजिक और धार्मिक दबाव भी तलाक के कारणों में शामिल हो सकते हैं। कुछ मामलों में, परिवार या समाज के दबाव के कारण लोग तलाक ले लेते हैं।

तलाक के प्रभाव (Effects Of Divorce)

तलाक के कई सामाजिक और आर्थिक प्रभाव पड़ते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख प्रभाव इस प्रकार हैं:

  • बच्चों पर प्रभाव: 

तलाक के सबसे अधिक प्रभाव बच्चों पर पड़ते हैं। तलाक के कारण बच्चों को भावनात्मक और सामाजिक रूप से परेशानी हो सकती है। बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी तलाक का नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

  • महिलाओं पर प्रभाव: 

तलाक के कारण महिलाओं को आर्थिक और सामाजिक रूप से कमजोर स्थिति में आना पड़ सकता है। तलाक के बाद महिलाओं को अपने और अपने बच्चों के लिए आर्थिक रूप से जिम्मेदारी लेनी पड़ती है।

  • सामाजिक व्यवस्था पर प्रभाव: 

तलाक से सामाजिक व्यवस्था पर भी असर पड़ता है। तलाक की बढ़ती दरें समाज में अस्थिरता पैदा कर सकती हैं।

हिंदू और मुस्लिम तलाक को कम करने के उपाय (Efforts to Reduce Hindu and Muslim Divorce)

तलाक की दरों को कम करने के लिए सरकार और समाज को मिलकर प्रयास करने चाहिए। इसके लिए निम्नलिखित नीतिगत दिशानिर्देश दिए जा सकते हैं:

  • वैवाहिक शिक्षा:

वैवाहिक शिक्षा के माध्यम से लोगों को वैवाहिक जीवन के महत्व और उसके लिए आवश्यक कौशलों के बारे में शिक्षित किया जा सकता है। इन कौशलों में संवाद, समस्या-समाधान, और विवाद-निपटान शामिल हैं। वैवाहिक शिक्षा लोगों को अपने वैवाहिक जीवन को बेहतर बनाने में मदद कर सकती है।

  • परिवार परामर्श:

परिवार परामर्श एक प्रकार का मनोचिकित्सा है जो वैवाहिक समस्याओं का समाधान करने में मदद करता है। परिवार परामर्श के माध्यम से पति-पत्नी अपने बीच के मतभेदों को सुलझाने और एक दूसरे के साथ बेहतर संबंध बनाने के तरीके सीख सकते हैं।

  • सामाजिक सुरक्षा:

तलाक के बाद महिलाओं और बच्चों को आर्थिक और सामाजिक रूप से कमजोर स्थिति में आना पड़ सकता है। इस कारण से, तलाक के बाद महिलाओं और बच्चों के लिए सामाजिक सुरक्षा का प्रावधान करना आवश्यक है। सामाजिक सुरक्षा के माध्यम से महिलाओं और बच्चों को अपने जीवन को फिर से शुरू करने में मदद मिल सकती है।

इन नीतिगत दिशानिर्देशों के अलावा, समाज को भी तलाक के बारे में जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है। लोगों को यह समझना चाहिए कि तलाक एक गंभीर निर्णय है जिसे जल्दबाजी में नहीं लिया जाना चाहिए। तलाक के सभी संभावित परिणामों को समझने के बाद ही तलाक का फैसला लेना चाहिए।

निष्कर्ष:

हिंदू और मुस्लिम (Hindu and Muslim) समुदायों में तलाक की दरों में ज्यादा अंतर नहीं है। भारत में तलाक की दर बढ़ रही है। इसकी वजहें अलग-अलग हैं, लेकिन हिंदू और मुस्लिम में तलाक (Hindu– Muslim Divorce) की दरों में अंतर है। इस अंतर को कम करने के लिए सरकार और समाज को मिलकर काम करना चाहिए।

Hindu and Muslim Divorce Rate: अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

प्रश्र: किस धर्म में तलाक की दर सबसे कम है?

उत्तर: भारत में तलाक की दर सबसे कम सिख और जैन धर्म में है। 2011 की जनगणना के अनुसार, सिखों में तलाक की दर 7.7% और जैनियों में यह दर 5.5% है।

प्रश्र: किस विवाह में तलाक की दर सबसे ज्यादा है?

उत्तर: भारत में तलाक की दर सबसे ज्यादा पहली शादी में है। 2011 की जनगणना के अनुसार, पहली शादी में तलाक की दर 2.1% है। दूसरी शादी में तलाक की दर 3.1% और तीसरी शादी में तलाक की दर 8.8% है।

प्रश्र: सबसे ज्यादा शादियां कौन खत्म करता है?

उत्तर: भारत में तलाक के मामलों में पुरुषों की संख्या महिलाओं की तुलना में अधिक है। 2011 की जनगणना के अनुसार, पुरुषों द्वारा तलाक के लिए दायर मामलों की संख्या महिलाओं द्वारा दायर मामलों की संख्या से 2.5 गुना अधिक है।

जानिए 12 राशियों का भविष्यफल और कैसा रहेगा अगला साल

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें