Bihari Marriage Rituals: क्या आपने कभी बिहारियों की शादी देखी है? तो चलिए आपको बताते है बिहारी विवाह रस्में, परंपराएं और उत्सवों का विस्तृत विवरण।
शादी में दूल्हा तलवार या चाकू क्यों रखता है?
Bihari Marriage Rituals:
भारत में हर राज्य की अपनी अनूठी सांस्कृतिक पहचान है, और बिहार भी इनमें से एक है। बिहार की शादियां अपनी सादगी, पारंपरिक मूल्यों और सांस्कृतिक गहराई के लिए जानी जाती हैं। ये विवाह केवल दो व्यक्तियों का मिलन नहीं, बल्कि दो परिवारों और उनकी पीढ़ियों का एक साथ आना है। यदि आप बिहारी शादी की रस्में (Indian Wedding Ritual Bihar Style) को करीब से जानना चाहते हैं, तो यह मार्गदर्शिका आपके लिए ही है।
क्षेत्र, जाति और परिवार के अनुसार कुछ भिन्नताएं हो सकती हैं, लेकिन अधिकांश रस्में एक समान धागे में पिरोई होती हैं। इस लेख में हम बिहार की शादी से पहले की रस्में, शादी के दिन की रस्में और शादी के बाद की रस्में सभी प्रमुख बिहारी विवाह रस्म (Bihari Vivah Rasmein) को विस्तार से जानेंगे।
बिहार की शादी की रस्में (Bihar Wedding Rasm)
शादी से पहले की रस्में (Pre-Wedding Rituals)
ये रस्में शादी के शुभ आरंभ और तैयारियों का प्रतीक होती हैं, जो नए रिश्ते की नींव रखती हैं।
छेकनी / छेका (Chekani / Cheka – Engagement/ Roka)
यह विवाह की पहली औपचारिक घोषणा है। लड़के और लड़की दोनों के परिवार पहली बार औपचारिक रूप से मिलते हैं और रिश्ते को अंतिम रूप देते हैं। यहां लड़के के परिवार वाले लड़की के घर या किसी निर्धारित स्थान पर जाते हैं। इसमें शगुन के तौर पर लड़के को कुछ पैसे, वस्त्र और फल दिए जाते हैं। यह ‘रोका’ या ‘सगाई’ का एक प्रारंभिक रूप है, जहां रिश्ते को पक्का किया जाता है।
टीका रस्म (Tika Ceremony/ Tilak Rasam)
लड़की का परिवार लड़के के माथे पर चंदन का टीका लगाकर उसे आशीर्वाद देता है। इस रस्म में उपहार, पगड़ी और मिठाई शामिल होती है। यही है बिहारी प्री वेडिंग रस्म की भावनात्मक शुरुआत।
हल्दी कुटाई (Haldi Kutai)
यह रस्म त्वचा को शुद्ध करने और रंगत निखारने के साथ-साथ बुरी आत्माओं से बचाने का भी प्रतीक है। इसे बहुत शुभ माना जाता है।
शादी से कुछ दिन पहले, घर की महिलाएं पारंपरिक चक्की (जांता) में साबुत हल्दी को पीसती हैं। इस दौरान शुभ गीत गाए जाते हैं। यही पिसी हुई हल्दी ‘हल्दी लेपन’ में उपयोग होती है।
मटकोड़ / मटमंगरा (Matkod / Matmangra)
यह रस्म शादी से एक या दो दिन पहले, परिवार की महिलाएं (दूल्हा और दुल्हन दोनों के घरों में) गाते-बजाते हुए पास के तालाब, कुएं या नदी से पवित्र मिट्टी लाने जाती हैं। इस मिट्टी का उपयोग घर के आँगन में एक छोटा सा चूल्हा या वेदी बनाने के लिए किया जाता है, जिस पर बाद में कुछ विवाह रस्में संपन्न होती हैं। यह रस्म बिहार की शादी की पूरी लिस्ट में पारंपरिक गहराई लिए होती है।
हल्दी लेपन / उबटन (Haldi Lepan / Haldi Rasm)
यह सौंदर्य बढ़ाने और दूल्हा-दुल्हन को विवाह के लिए तैयार करने की रस्म है। मटकोड़ के बाद, हल्दी, तेल, बेसन और अन्य आयुर्वेदिक सामग्री का उबटन बनाकर दूल्हा-दुल्हन के शरीर पर लगाया जाता है। यह रस्म हंसी-मजाक और खुशी के माहौल में संपन्न होती है, जिसमें परिवार के सदस्य और दोस्त शामिल होते हैं।
धृतधारी और मातृपूजा (Dhartdhari and Matrapujan)
यह रस्म पूर्वजों और देवताओं का आशीर्वाद लेने के लिए होती है, ताकि वैवाहिक जीवन सफल और खुशहाल रहे। इसमें हल्दी लेपन के बाद, दूल्हा-दुल्हन अपने-अपने घरों में एक विशेष पूजा में भाग लेते हैं। पुरोहित वैदिक मंत्रों का उच्चारण करते हुए पूर्वजों और देवताओं को आमंत्रित करते हैं और उनका आशीर्वाद मांगते हैं।
मंडप पूजन (Mandap Pujan)
मंडप विवाह समारोह का पवित्र स्थल होता है, जिसमें फेरे और कन्यादान जैसी सभी रस्में की जाती हैं। इसे शादी के दिन या एक दिन पहले, पुरोहित द्वारा मंडप का निर्माण किया जाता है और उसकी विधि-विधान से पूजा की जाती है। मंडप को नारियल, आम के पत्ते और अन्य शुभ वस्तुओं से सजाया जाता है।
सिलपोहा और इमली घुटाई रस्म (Silapoha aur Imli Ghutaee Rasm)
सिलपोहा रस्म बिहारी प्री-वेडिंग (Bihari Pre wedding) या शादी के दिन निभाई जाने वाली एक पारंपरिक और भावनात्मक रस्म है। इस रस्म में दुल्हन की मां पोहा (चिवड़ा या चावल) को पारंपरिक सिलबट्टा या मूसल पर पीसती हैं। यह प्रक्रिया बेटी को विदा करने की एक भावनात्मक अभिव्यक्ति होती है, जिसमें मां अपने हाथों से गृहस्थ जीवन के लिए बेटी के नए सफर की शुरुआत करती है। यह रस्म दर्शाती है कि एक माँ अपने हाथों से बेटी के जीवन में सौभाग्य और सुख-शांति की कामना कर रही है।
वहीं दूसरी ओर, इमली घुटाई रस्म भी एक अनोखी परंपरा है जो दूल्हे के जीवन में एक नए अध्याय की शुरुआत को दर्शाती है। इस रस्म में दूल्हे के मामा उसे सिखाते हैं कि अब वह एक जिम्मेदार जीवन में प्रवेश कर रहा है और उसे अपने बुरे व्यवहार, आदतों या गुस्से पर नियंत्रण रखना चाहिए। इस अवसर पर मामा उसे एक सुपारी देते हैं, जिसे वह अपने मुंह में डालता है – यह संकेत है कि अब वह कुछ भी बोलने या करने से पहले सोच-विचार करे। यह पूरी प्रक्रिया पारिवारिक स्नेह, अनुशासन और आशीर्वाद से भरी होती है।
शादी के दिन की रस्में (Wedding Day Rituals)
यह वह दिन होता है जब दूल्हा-दुल्हन सात जन्मों के लिए एक-दूसरे के हो जाते हैं।
परिच्छवन अनुष्ठान (Parchhan Rasm)
बिहारी विवाह परंपरा में, शादी के दिन दूल्हे के घर से बारात निकलने से ठीक पहले ‘परछन’ अनुष्ठान होता है। इस रस्म को मुख्य रूप से दूल्हे की माँ करती है। दूल्हा जब अपनी शादी की पोशाक में तैयार होकर बारात प्रस्थान के लिए आता है, तो माँ एक आरती की थाली सजाती हैं जिसमें दीपक, रोली, चावल, दूर्वा घास और मिठाई रखती हैं। वह अपने बेटे की आरती उतारती हैं, जो उसे किसी भी बुरी नज़र या नकारात्मक ऊर्जा से बचाने का प्रतीक है, ताकि उसकी यात्रा निर्बाध हो और नया वैवाहिक जीवन सुखमय रहे।
बरियाती / बारात प्रस्थान (Baraat Prasthan)
दूल्हा पारंपरिक वेशभूषा में घोड़ी या सजी हुई गाड़ी पर सवार होकर बारात के साथ दुल्हन के घर की ओर निकलता है। ढोल-नगाड़े, बैंड-बाजे और नाच-गाना इस बारात को बेहद जीवंत बना देता है।
द्वार पूजा (Dwar Puja)
यह दूल्हे का दुल्हन के घर में शुभ स्वागत है। जब बारात दुल्हन के घर पहुँचती है, तो दुल्हन की माँ और परिवार की अन्य महिलाएं दूल्हे का आरती और तिलक लगाकर स्वागत करती हैं।
जयमाला गलसेडी (Jaymala)
यह दूल्हा और दुल्हन द्वारा एक-दूसरे को पति-पत्नी को स्वीकार करने का प्रतीक है। दूल्हा और दुल्हन मंच पर एक-दूसरे को फूलों की सुंदर मालाएं पहनाते हैं। यह अक्सर हंसी-मजाक का पल होता है, जहाँ दोस्त और परिवार उन्हें माला पहनाने में थोड़ा छेड़ते हैं।
कन्यादान (Kanyadaan)
यह भारतीय विवाहों की सबसे भावनात्मक और पवित्र रस्मों में से एक है, जिसमें पिता अपनी बेटी का हाथ दूल्हे के हाथ में सौंपते हैं जो यह दर्शाता है कि अब वह अपनी बेटी की जिम्मेदारी दूल्हे को सौंप रहे हैं। यह त्याग, विश्वास और प्रेम का प्रतीक है।
सिंदूरदान (Sindoor Daan)
यह रस्म दुल्हन के विवाहित होने और वैवाहिक सुख का सबसे महत्वपूर्ण प्रतीक है। कन्यादान के बाद, दूल्हा दुल्हन की मांग में सिंदूर भरता है। कुछ क्षेत्रों में, दूल्हा सिक्के, अंगूठी और विशेष प्रकार के कपड़े से सिंदूर लगाता है।
गठबंधन (Gathbandhan)
यह दूल्हा और दुल्हन के बीच के अटूट बंधन और उनके जीवन भर साथ रहने का प्रतीक है। दुल्हन की साड़ी का पल्लू और दूल्हे का दुपट्टा या गमछा एक साथ बांधा जाता है, जो उनके एक होने को दर्शाता है।
भैसुर निरीक्षण, कुलदेवता पूजा और फेरे (Bhaisur Nirikshan, Kuladevata Pooja Aur Saat Phere)
बिहारी विवाह की रस्मों में, ‘भैसुर निरीक्षण’ का विशेष स्थान है, जहाँ दुल्हन को उसके ससुर और पति के बड़े भाई द्वारा साड़ी, आभूषण और लहंगा जैसे बहुमूल्य उपहार दिए जाते हैं। यह न केवल परिवार में उसके स्वागत का प्रतीक है, बल्कि उसे पैतृक आभूषणों के माध्यम से कुल की विरासत सौंपने का भी एक तरीका है। इस रस्म के बाद, जोड़ा अपनी कुलदेवी या कुलदेवता का पूजन करता है, उनसे अपने नए जीवन के लिए आशीर्वाद मांगता है। अंततः, विवाह की सबसे पवित्र रस्म, अग्नि के चारों ओर ‘फेरे’ (सप्तपदी) लिए जाते हैं, जिसमें भुने हुए चावल की आहुति (लाजा होम) डालकर शुभता और समृद्धि की कामना की जाती है।
विदाई (Vidaai)
यह दुल्हन के मायके से विदा होने का एक भावुक क्षण है, जहाँ वह अपने माता-पिता और भाई-बहनों को छोड़कर अपने नए घर जाती है।
दुल्हन अपने मायके से निकलते समय पीछे की ओर चावल फेंकती है, चावल फेखने की रस्म यह दर्शाता है कि वह अपने माता-पिता के घर को धन्य कर रही है और समृद्धि छोड़ रही है।
बिहारी शादी के बाद की रस्में (Bihari Post-Wedding Rituals)
ये रस्में दुल्हन के नए घर में प्रवेश और उसके विवाहित जीवन की शुरुआत से जुड़ी हैं।
गृह प्रवेश (Griha Pravesh)
यह दुल्हन का ससुराल में पहला और शुभ प्रवेश है, जो घर में लक्ष्मी के आगमन का प्रतीक है। जब दुल्हन ससुराल पहुँचती है, तो उसका भव्य स्वागत होता है। वह चावल से भरे कलश को अपने दाहिने पैर से गिराकर घर में प्रवेश करती है। इसके बाद, वह लाल रंग (महावर या अलता) में अपने पैरों को डुबोकर घर में चलती है, जिससे शुभ पैरों के निशान बनते हैं।
कोहवार परीक्षण (Kohvar Test)
कोहवार या कोहबर परीक्षण एक पारंपरिक और बेहद निजी रस्म होती है, जिसमें केवल घर की करीबी महिलाएं ही शामिल होती हैं। यह रस्म दुल्हन के कमरे में की जाती है, जहाँ सबसे पहले परिवार की बुज़ुर्ग महिलाएं यह सुनिश्चित करने के लिए प्रवेश करती हैं कि नवविवाहित जोड़े ने वैवाहिक संबंध स्थापित किया है या नहीं।
यह रस्म आज के समय में कई जगहों पर केवल एक मान्यता या पारंपरिक प्रतीक भर बनकर रह गई है, जिसे आधुनिक सोच रखने वाले परिवार निभाना जरूरी नहीं मानते।
मुँह दिखाई (Muh Dikhai)
यह ससुराल के सदस्यों द्वारा नई दुल्हन को पहली बार देखने और उसे स्वीकार करने की रस्म है। दुल्हन अपने ससुराल में परिवार की सभी महिलाओं और रिश्तेदारों से मिलती है, जो उसका घूंघट उठाकर उसका चेहरा देखते हैं। इस अवसर पर दुल्हन को उपहार दिए जाते हैं और उसे आशीर्वाद मिलता है।
चौथरी (Chauthari)
चौथरी की रस्म बिहारी विवाह (Bihari Vivah) के बाद उसी दिन होती है, जिस दिन दुल्हन की मुंह दिखाई और स्वागत आरती की जाती है। यह एक शुभ अवसर होता है, जहाँ परिवार ईश्वर से नवविवाहित जोड़े के सुखमय जीवन की कामना करता है।
इस दिन सत्यनारायण भगवान की कथा भी की जाती है। पंडित जी कथा के माध्यम से आशीर्वाद देते हैं और दंपती के जीवन में प्रेम, शांति और समृद्धि की प्रार्थना की जाती है।
चौका चुलाई (Chauka Chulai)
नए घर में पहला स्वाद शादी के अगले दिन नवविवाहित बिहारी दुल्हन के लिए यह परंपरा होती है कि वह ससुराल में पहली बार रसोई संभालती है। इसे “पहली रसोई” (Pahli Rasoi) कहा जाता है। इस दिन दुल्हन कुछ मीठा व्यंजन, जैसे हलवा या खीर बनाती है, जिसे शुभ और मंगलकारी माना जाता है।
खाना तैयार होने के बाद परिवार के सदस्य मिलकर उस स्वाद का आनंद लेते हैं और दुल्हन की पाक-कला की सराहना करते हैं। इसके बाद सास-ससुर और अन्य बुज़ुर्ग उसे प्यार और आशीर्वाद स्वरूप शगुन देते हैं। यह रस्म न केवल दुल्हन की नई शुरुआत का प्रतीक है, बल्कि उसे परिवार में अपनाने का एक सुंदर तरीका भी है।
चौथी चालन (Chauthi Chalan)
कुछ दिनों के बाद, दूल्हा और दुल्हन दुल्हन के मायके वापस जाते हैं, जहाँ उनका फिर से स्वागत किया जाता है। यह दोनों परिवारों के बीच संबंधों को मजबूत करता है।
निष्कर्ष:
बिहारी शादी की रस्में (Bihari Wedding Rituals) केवल परंपराएं नहीं हैं, बल्कि ये प्यार, सम्मान, परिवार और समुदाय के गहरे मूल्यों का प्रतिबिंब हैं। हर रस्म अपने आप में एक कहानी कहती है, जो नए रिश्तों को मजबूत करती है और जीवन भर की यादें बनाती है। ये रस्में न केवल दूल्हा-दुल्हन को एक साथ लाती हैं, बल्कि पूरे परिवार को एक पवित्र बंधन में बांधती हैं, जो भारतीय संस्कृति की समृद्ध विरासत को दर्शाती हैं।
Bihari Marriage Rituals: अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
प्रश्न: बिहारियों की शादी कैसे होती है?
उत्तर: पारंपरिक रस्मों, लोकगीतों, और पारिवारिक भागीदारी के साथ होती है, जिसमें सगाई से लेकर विदाई और गृह प्रवेश तक कई चरण शामिल होते हैं।
प्रश्न: बिहारी विवाह में कितनी रस्में होती हैं?
उत्तर: कोई निश्चित संख्या नहीं, लेकिन आमतौर पर 15-25 से अधिक प्रमुख रस्में होती हैं, जो शादी से पहले, शादी के दिन और शादी के बाद के चरणों में बंटी होती हैं।
प्रश्न: बिहारी दुल्हनें क्या पहनती हैं?
उत्तर: मुख्य रूप से लाल, मैरून या गहरे गुलाबी रंग की बनारसी सिल्क साड़ी या लहंगा-चोली, साथ में भारी सोने के पारंपरिक आभूषण जैसे मांग टीका, नथ, हार, कंगन और पायल।
प्रश्न: बिहारी शादी में भात क्या होता है?
उत्तर: “भात” मामा (माँ के भाई) द्वारा निभाई जाने वाली एक रस्म है, जिसमें वे दूल्हा/दुल्हन को कपड़े, चावल और अन्य उपहार देते हैं, जो स्नेह और आशीर्वाद का प्रतीक है। इसे ‘मामा भात’ भी कहते हैं।
प्रश्न: बिहार में कितने साल की उम्र में शादी करनी चाहिए?
उत्तर: भारत के कानून के अनुसार, लड़कों के लिए न्यूनतम 21 साल और लड़कियों के लिए 18 साल।
प्रश्न: बिहारी शादी में ढोलना क्या है?
उत्तर: “ढोलना” या “डोली” का संबंध विदाई की रस्म से है, जो दुल्हन के मायके से ससुराल जाने की यात्रा और उस भावनात्मक क्षण को दर्शाता है।
प्रश्न: बिहारियों की शादी कैसे होती है?
उत्तर: बिहारियों की शादी पारंपरिक रस्मों और उत्सवों से भरी होती है। इसमें सगाई, हल्दी, मटकोर जैसी पूर्व-विवाह रस्में; शादी के दिन द्वार पूजा, कन्यादान, सिंदूरदान, और सात फेरे जैसी मुख्य रस्में; तथा विदाई, गृह प्रवेश और पहली रसोई जैसी विवाह-पश्चात रस्में शामिल होती हैं। यह सब गीत-संगीत और पारिवारिक भागीदारी के साथ संपन्न होता है।
10+ राखी के लिए ट्रेंडिग मेंहदी…