Indian Wedding Rituals: जानिए शादी में मां क्यों नहीं देखती बेटे के फेरे? क्या यह सिर्फ परंपरा है या पीछे कोई गहरा कारण है? जाने विस्तार में।
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Indian Wedding Rituals:
भारतीय विवाह परंपराएं बेहद गहरी भावनाओं और आस्था से जुड़ी होती हैं। इन्हीं में से एक सवाल अक्सर लोगों के मन में आता है कि “सात फेरे क्यों नहीं देखती लड़के की मां?” या “मां क्यों नहीं देखती बेटे की शादी के फेरे?” इन सवालों के पीछे केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि सामाजिक, पारंपरिक और ऐतिहासिक कारण भी छिपे हैं। आइए जानते हैं विस्तार से कि “मां को क्यों नहीं देखने चाहिए बेटा बहू के शादी के फेरे?”
शादी के समय लड़के की मां फेरे क्यों नहीं देखती? (Why Grooms Mother Does Not See The Wedding Ceremony)
धार्मिक मान्यता (Religious Belief)
सप्तपदी यानी सात फेरे, हिंदू विवाह का सबसे पवित्र हिस्सा होता है। इन फेरों के दौरान वर-वधू अग्नि को साक्षी मानकर जीवन भर साथ निभाने की प्रतिज्ञा करते हैं।
ऐसे में यह माना जाता है कि शादी में मां क्यों नहीं देखती बेटे के फेरे, का कारण यह है कि रस्म के वक्त माहौल पूरी तरह शांत, शुद्ध और भावनात्मक रूप से संतुलित रहे।
पारंपरिक विश्वाश (Traditional Beliefs)
“मां क्यों नहीं देखती बेटे की शादी के फेरे?” (why is the grooms mother not allowed to see the wedding ceremony) — यह सवाल कई परिवारों में परंपरा से जुड़ा हुआ है। मान्यता है कि अगर लड़के की मां फेरे देखती है, तो नवविवाहित जोड़े के वैवाहिक जीवन में बाधाएं आ सकती हैं।
हालांकि इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है, लेकिन लोकविश्वास और बुजुर्गों की मान्यताओं का प्रभाव आज भी देखा जाता है।
नजर से बचाव (Protection from Evil Eye)
कई बार परिवार के बुजुर्ग यह मानते हैं कि मां का अत्यधिक स्नेह, वर-वधू को बुरी नजर से बचाने की जगह अनजाने में नुकसान कर सकता है।
इसलिए कहा जाता है कि “मां को क्यों नहीं देखने चाहिए बेटा बहू के शादी के फेरे”, ताकि नजर से उनका रिश्ता और गृहस्थ जीवन सुरक्षित रहे।
भावनात्मक पहलू (Emotional Aspect)
मां के लिए बेटे की शादी का दिन बहुत भावुक पल होता है। कई बार उनकी आंखों में आंसू और भावनाओं का सागर उमड़ पड़ता है, जिससे वर भी भावुक हो सकता है।
इसीलिए अक्सर “शादी में मां क्यों नहीं देखती बेटे के फेरे?” (why mothers don’t attend son’s marriage) इसका उत्तर यही होता है कि वह भावनात्मक संतुलन बनाए रखने के लिए कुछ समय पीछे रहती है।
संस्कारों की शुद्धता बनाए रखना (Maintaining Sanctity of Rituals)
सात फेरे (Saat Phere) केवल एक रस्म नहीं, बल्कि धार्मिक संकल्प हैं। ये पल केवल वर-वधू और अग्नि के बीच होने वाले आध्यात्मिक बंधन के होते हैं।
परिवार वालों का विशेषकर मां जैसी आत्मीय व्यक्ति की उपस्थिति कई बार वर का ध्यान भटका सकती है।
घर की सुरक्षा (Due to Home Security)
पुराने समय में जब सुरक्षा की सुविधा नहीं थी, तब डकैत शादी वाले घरों को निशाना बनाते थे। ऐसे में लड़के की मां सहित घर की महिलाएं, घर की देखभाल और सुरक्षा के लिए फेरे की रस्मों में पूरी तरह शामिल नहीं होती थीं।
यह ऐतिहासिक स्थिति आज भी कुछ सामाजिक मान्यताओं का रूप लेकर बनी हुई है।
बहू के स्वागत की तैयारियों में व्यस्तता (Busy With Preparations Of Bridal New House Entry Welcome)
शादी की रात के बाद अगली सुबह बहू का पहली बार ससुराल आगमन होता है, जिसे बेहद शुभ और खास माना जाता है। दूल्हे की मां को दुल्हन का गृह प्रवेश (Bridal Grah Pravesh), पूजा, रस्मों और मेहमानों की व्यवस्था संभालनी होती है। इसलिए वह फेरों के समय विवाह स्थल से दूर रहती है ताकि अगले दिन की तैयारियों में कोई कमी न रह जाए।
- आज की दौर की बदलती सोच (Changing Mindset in Modern Times)
आज कई परिवारों में यह सवाल पूछा जाता है “सात फेरे क्यों नहीं देखती लड़के की मां?” — और इसका उत्तर होता है कि अब देखती हैं!
आधुनिक सोच के साथ बहुत से परिवार अब इस परंपरा को भावनात्मक रूप से तो मानते हैं, पर रोक के रूप में नहीं। आज मां भी बेटे-बहू की शादी के हर पवित्र क्षण का हिस्सा बनती हैं, आशीर्वाद देती हैं और पूरी श्रद्धा से साथ रहती हैं।
निष्कर्ष:
मां क्यों नहीं देखती बेटे की शादी के फेरे?(Indian Wedding Rituals) इसका कोई एक उत्तर नहीं है, बल्कि इसमें धर्म, भावनाएं, सुरक्षा, परंपरा और समाज — सभी का समावेश है।
यह परंपरा आज भी भावनात्मक और सांस्कृतिक कारणों से जीवित है, लेकिन समय के साथ परिवार अपनी समझ और भावनाओं के अनुसार इसमें बदलाव भी कर रहे हैं। इसलिए “परंपराएं तब तक ही सुंदर हैं जब तक वे प्रेम, समझ और संतुलन के साथ निभाए जाएं।”
Indian Wedding Rituals: अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
प्रश्न: शादी में मां क्यों नहीं देखती बेटे के फेरे?
उत्तर: यह परंपरा भावनात्मक और धार्मिक दोनों दृष्टिकोणों से जुड़ी है। मान्यता है कि मां का बेटे के फेरे देखना अशुभ माना जाता है क्योंकि मां का स्नेह अत्यधिक होता है और वह भावुक होकर नजर लगा सकती है। साथ ही कुछ धार्मिक मान्यताओं के अनुसार विवाह संस्कार देवताओं की उपस्थिति में होते हैं, और उस दौरान मां की उपस्थिति ऊर्जाओं के संतुलन को प्रभावित कर सकती है।
प्रश्न: लड़के की मां फेरे क्यों नहीं देखती?
उत्तर: पुराने समय में यह विश्वास था कि मां के भीतर इतना ममत्व होता है कि वह अनजाने में बहू को स्वीकार नहीं कर पाती और इससे विवाह बंधन कमजोर हो सकता है। इसे नजर दोष से भी जोड़ा जाता है। भावनात्मक रूप से भी मां बेटे को किसी और के साथ बंधता देख बहुत भावुक हो जाती है, इसलिए उन्हें उस वक्त अलग रखा जाता है।
प्रश्न: मां को क्यों नहीं देखने चाहिए बेटा बहू के शादी के फेरे?
उत्तर: यह सामाजिक और पारंपरिक मान्यता है। शादी के फेरे एक पवित्र अनुष्ठान होते हैं। मान्यता है कि मां की उपस्थिति से यदि उसके मन में कोई चिंता, असहमति या अत्यधिक भावनाएं हैं तो वह ऊर्जा परिवेश पर असर डाल सकती है। इसलिए मां को फेरे देखने से मना किया जाता है।
प्रश्न: क्या मां बेटे की शादी के फेरे देख सकती है?
उत्तर: आधुनिक समय में यह पूरी तरह परिवार की मान्यता और परंपरा पर निर्भर करता है। कुछ परिवार अब इस परंपरा को भावनात्मक कारणों से निभाते हैं लेकिन इसे नियम की तरह नहीं मानते। अगर मां सकारात्मक भाव के साथ उपस्थित हो तो कई जगहों पर उसे फेरे देखने की अनुमति दी जाती है।
प्रश्न: क्या मां का बेटे की शादी के फेरे न देखने की परंपरा आज भी प्रचलित है?
उत्तर: हां, भारत के कई हिस्सों में आज भी यह परंपरा निभाई जाती है, खासकर ग्रामीण या परंपरावादी परिवारों में। हालांकि, शहरी और आधुनिक सोच वाले परिवारों में इसे धीरे-धीरे बदलते हुए देखा जा रहा है और मां को भी विवाह में सम्मिलित किया जा रहा है।
प्रश्न: लड़के की मां शादी के फेरे क्यों नहीं देखती है?
उत्तर: मान्यता है कि मां का बेटे से गहरा लगाव होता है, और वह भावुक होकर अनजाने में नई बहू को नजर लगा सकती है। इसलिए वह फेरे नहीं देखती।
प्रश्न: दूल्हे की मां को फेरे क्यों नहीं दिखाई देते?
उत्तर: यह परंपरा नजर दोष और ऊर्जाओं के संतुलन से जुड़ी है। मां के अत्यधिक स्नेह के कारण उसे फेरे देखने से रोका जाता है।
प्रश्न: दूल्हे की माँ शादी समारोह क्यों नहीं देखती है?
उत्तर: पुराने समय में सुरक्षा कारणों से महिलाएं घर पर रहती थीं। धीरे-धीरे यह रिवाज बन गया कि मां शादी की कुछ रस्मों से दूर रहती है।
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