Bundelkhand Marriage Rituals In Hindi: बुंदेलखंड की शादी में निभाई जाने वाली अनोखी परंपराओं के बारे में जानें।
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Bundelkhand Marriage Rituals In Hindi:
बुंदेलखंड, जो मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में फैला है, अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और परंपराओं के लिए प्रसिद्ध है। बुंदेलखंड की शादी (Bundeli Vivah Sanskar) पारंपरिक रीति-रिवाजों और अनोखी रस्मों से भरी होती हैं, जो विवाह को सिर्फ एक सामाजिक बंधन नहीं, बल्कि एक भव्य और पवित्र आयोजन बनाती हैं।
बुंदेली शादी (Bundelkhand Wedding Traditions) कई चरणों में विभाजित होती हैं, जिनमें शादी से पहले, शादी के दिन और शादी के बाद की रस्में शामिल हैं। हर रस्म के पीछे एक खास मान्यता होती है, जो बुंदेली संस्कृति और परिवारों की गहरी आस्था को दर्शाती है।
बुंदेली विवाह संस्कार (Marriage ritual of Bundelkhand)
यहां नीचे आपको बुंदेलखंड विवाह का विस्तार में समझाया गया है जिससे आपको पता चलेगा कि बुंदेलखंड में शादियां कैसे होती हैं:
शादी से पहले की रस्में (Pre-Wedding Rituals in Bundelkhand)
1. टिकावन या रोका रस्म (Engagement Ceremony)
- इसे “तिलक” भी कहा जाता है और यह शादी की पहली औपचारिक रस्म होती है।
- इस रस्म में वधू पक्ष के लोग वर के घर जाते हैं और उसे तिलक लगाकर आशीर्वाद देते हैं।
- वर को नए वस्त्र, मिठाई, नारियल, पान-सुपारी, और कुछ धनराशि दी जाती है।
- इसे शादी का पहला आधिकारिक एलान माना जाता है और यह तय कर लिया जाता है कि यह विवाह अब सुनिश्चित हो गया है।
2. लावन / सगाई (Ring Ceremony)
- इसे लावन या सगाई कहा जाता है, जिसमें वर-वधू एक-दूसरे को अंगूठी पहनाते हैं।
- इस अवसर पर बुंदेली लोकगीत गाए जाते हैं और महिलाएं पारंपरिक ढंग से नृत्य करती हैं।
- वर-वधू को मिठाई खिलाई जाती है और उनका स्वागत फूलों से किया जाता है।
3. हल्दी-मांझा रस्म (Haldi Ceremony)
- इस रस्म में हल्दी, चंदन, और दही का उबटन वर और वधू दोनों को लगाया जाता है।
- हल्दी लगाने का उद्देश्य शरीर को निखारना और शादी के दिन सुंदरता बढ़ाना होता है।
- इस दौरान घर की महिलाएं पारंपरिक लोकगीत गाती हैं और सभी रिश्तेदार हंसी-मजाक करते हैं।
- इसे “मांझा” भी कहा जाता है और यह शादी के एक या दो दिन पहले की जाती है।
4. तेल चढ़ाना (Oil Ritual)
- वर और वधू के शरीर पर सरसों का तेल लगाया जाता है ताकि उनकी त्वचा चमकदार और स्वस्थ हो जाए।
- इसे शादी के पहले सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।
5. मातृ-पूजन (Matr-Poojan)
- यह विवाह की शुभ रस्मों में से एक है, जो तेल चढ़ाने के बाद की जाती है।
- स्त्रियां पास के खदान या पवित्र स्थान से मिट्टी लाकर इसकी पूजा करती हैं।
- इस पवित्र मिट्टी से नया चूल्हा बनाया जाता है, जिसे शुभ माना जाता है।
- इस चूल्हे पर सबसे पहले मेहर (गेहूं और गुड़ से बनी प्रसादी) सेंकी जाती है और कुल देवता को चढ़ाई जाती है।
- गुड़ और आटे से छोटी-छोटी गोलियां या बत्तियां बनाई जाती हैं, जिन्हें मायें कहा जाता है।
- इस रस्म को परिवार की समृद्धि और मंगलकामना के लिए किया जाता है।
6. मंडप छेदन (Mandap Ritual)
- विवाह के लिए मंडप तैयार किया जाता है, जिसे पलाश वृक्ष की लकड़ियों से बनाया जाता है। इसे बढ़ई विशेष रूप से तैयार करके लाता है।
- जब बढ़ई मंडप लेकर आता है, तो उसका पूजन किया जाता है और सगुन के रूप में अनाज और पैसे देकर उसका सम्मान किया जाता है।
- मंडप स्थापित करने से पहले भूमि की पूजा की जाती है और शुभता के लिए गड्ढा खोदा जाता है।
- गड्ढे में पांच हल्दी की गांठें और पैसे डालकर इसे शुभ बनाया जाता है।
- पांच व्यक्ति मिलकर इस पवित्र मंडप को पकड़कर सही दिशा में स्थापित करते हैं।
- स्थापना के बाद हवन (होम) किया जाता है और देवी-देवताओं को रसोई का भोग अर्पित किया जाता है।
- मंडप को ब्रह्मा जी का स्वरूप माना जाता है, इसलिए इसके चार मुख बनाए जाते हैं, जो चारों दिशाओं का प्रतीक होते हैं।
- मंडप स्थापित करते समय महिलाएं पारंपरिक लोकगीत गाती हैं, जिससे विवाह समारोह का माहौल और भी शुभ और आनंदमय हो जाता है।
7. चीकट / भात देना (Cheekat/ Bhaat Dena)
- विवाह में भाई अपनी बहन को (जिसके वर या वधू का विवाह होता है) चीकट अर्पित करता है, जो शुभता और स्नेह का प्रतीक माना जाता है।
- भाई अपनी पीठ पर वस्त्र रखकर यह भेंट बड़े प्रेम और श्रद्धा से बहन को देता है। यह उसकी बहन और उसके परिवार के प्रति समर्पण और सहयोग का प्रतीक है।
- भेंट देने के बाद बहन अपने भाई को मंडप के नीचे बैठाकर मिठाई खिलाती है, जो भाई के प्रति उसके प्रेम और आभार का भाव दर्शाता है।
- यह रस्म भाई-बहन के रिश्ते को और मजबूत बनाती है और विवाह समारोह में भाई की महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाती है।
- चीकट की रस्म पूरी होने के बाद रात में सभी कुटुंबजन आमंत्रित किए जाते हैं, जिससे परिवार में उत्सव और खुशी का माहौल बनता है।
शादी के दिन की रस्में (Wedding Day Rituals in Bundelkhand)
8. निकासी (Nikaasi)
- बारात निकलने से पहले दूल्हे को पारंपरिक पोशाक पहनाई जाती है, यह पोषक दूल्हे के जीजा द्वारा पहनाया जाता है जिसमें साफा (पगड़ी) और शेरवानी या धोती-कुर्ता शामिल होता है।
- घर की महिलाएं दूल्हे की आरती उतारती हैं और तिलक लगाकर उसकी मंगल यात्रा की प्रार्थना करती हैं।
- दूल्हे को घोड़ी (या वाहन) पर बैठाने से पहले उसकी पूजा की जाती है और उसे मिठाई खिलाई जाती है।
- दूल्हे के बड़े-बुजुर्ग उसे आशीर्वाद देते हैं और सुखद वैवाहिक जीवन की कामना करते हैं।
- बारात की निकासी के दौरान बैंड-बाजे, ढोल-नगाड़ों की धुन पर परिवारजन नाचते-गाते हैं, जिससे माहौल उत्सवमय हो जाता है।
- सभी रस्में पूरी होने के बाद दूल्हा बारात के साथ वधू के घर की ओर प्रस्थान करता है।
9. बरात की विदाई (Baraat)
- शादी के दिन वर पक्ष धूमधाम से बरात निकालता है।
- दूल्हा पारंपरिक शाही पोशाक पहनता है और घोड़ी पर बैठता है।
- ढोल-नगाड़ों, बैंड-बाजों और नाच-गाने के साथ बारात निकलती है।
10. जनवासे की परंपरा (Welcoming the Groom’s Family)
- जब बरात वधू के गांव या शहर में पहुंचती है, तो उन्हें एक विशिष्ट स्थान पर ठहराया जाता है, जिसे जनवासे कहते हैं।
- यहाँ वर पक्ष को आराम करने के लिए स्थान दिया जाता है और पारंपरिक भोज कराया जाता है।
11. तोरण मारना (Toran Ritual)
- जब वर विवाह स्थल पर पहुंचता है, तो उसे मुख्य द्वार पर रखा हुआ तोरण (आम या अशोक के पत्तों से बना) मारना होता है।
- इस रस्म का अर्थ है कि वर किसी भी बाधा से बेखौफ होकर शादी करेगा।
12. द्वारचार रस्म (Dwarchar)
- वधू पक्ष के सदस्य द्वार पर वर की आरती उतारते हैं।
- उसे दही-शक्कर खिलाकर विवाह मंडप में प्रवेश दिया जाता है।
13. जयमाल और वरमाला (Jaimal/ Varmala)
- वर-वधू एक-दूसरे को फूलों की माला पहनाते हैं।
- इसे “स्वीकार समारोह” भी कहा जाता है और यह दोनों के मिलन का प्रतीक होता है।
14. चढ़ावा (Chadhawa)
- वरमाला के बाद दूल्हे का पिता स्वयं मंडप के मध्य जाकर दुल्हन को आभूषण और उपहार अर्पित करता है।
- ससुर अपनी बहू को स्वर्ण और रजत के आभूषण भेंट करता है, जिससे उसका वैवाहिक जीवन समृद्धि और शुभता से भरा रहे।
- दुल्हन की ओली (आंचल या गोद) में नारियल और बताशा रखे जाते हैं, जो समृद्धि और सौभाग्य के प्रतीक होते हैं।
- कन्या को शक्ति का स्वरूप मानकर उसका विधिवत पूजन किया जाता है, जिससे उसका जीवन सुखद और मंगलमय हो।
15. कंकन बंधाई (Kankan Ceremony)
- कंकन बंधाई विवाह की प्रारंभिक रस्मों में से एक है, जिसमें वर और वधू के हाथों में मौली (रक्षा सूत्र) बांधा जाता है। इसे शुभता, समर्पण और बंधन का प्रतीक माना जाता है।
- यह रस्म मंडप में विधिवत मंत्रोच्चारण के साथ संपन्न होती है, जिसमें पुरोहित पवित्र जल (गंगाजल) और हल्दी से वर-वधू के हाथों को शुद्ध करते हैं।
- दूल्हे की कलाई पर यज्ञोपवीत धारण करने के बाद मौली बांधी जाती है।
- दुल्हन के दाएं हाथ में मौली बांधकर उसके विवाहिक जीवन की मंगलकामना की जाती है।
- इस दौरान परिवार के बुजुर्ग वर-वधू को आशीर्वाद देते हैं।
- यह सूत्र विवाह के दौरान वर-वधू की बुरी नजर और नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा करता है और उनके दांपत्य जीवन को सुखमय बनाने की कामना की जाती है।
- कंकन बंधाई के समय महिलाएं मंगल गीत गाती हैं और पूरे परिवार में उत्सव का माहौल रहता है।
16. कन्यादान (Kanyadaan)
- विवाह हवन के पूर्ण होने के बाद कन्यादान की रस्म संपन्न होती है। इसमें कन्या का पिता अपनी पुत्री को वर के हाथों सौंपने का संकल्प लेता है।
- पिता वर के हाथ में अपनी बेटी का हाथ रखता है, जिससे यह संकेत मिलता है कि वह अब अपनी पुत्री को उसके जीवनसाथी को सौंप रहा है।
- पुरोहित कन्यादान संकल्प का मंत्र उच्चारित करता है, जिसमें कन्या को वर को सौंपने और उसके सुखद भविष्य की कामना की जाती है।
- इस शुभ अवसर पर कई परिवारों में गाय का दान (गोदान) भी किया जाता है, जिसे हिंदू धर्म में अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है।
- कन्यादान को सबसे बड़ा और पुण्य देने वाला दान माना जाता है, क्योंकि इसमें पिता अपनी संतान को प्रेम, आशीर्वाद और जिम्मेदारी के साथ उसके पति को सौंपता है।
17. सात फेरे/ भांवर (Saat Phere)
- विवाह के समय सात ऋषियों और सात समुद्रों को प्रतीक रूप में स्थापित किया जाता है।
- मंडप में चौदह पात्र रखे जाते हैं, जिन्हें सप्त ऋषियों और सात समुद्रों का प्रतीक माना जाता है।
- वर-कन्या मंडप के नीचे अपने-अपने स्थान पर बैठते हैं और विवाह की अगली रस्में शुरू होती हैं।
- वर सात प्रतिज्ञाएँ करता है, जिनमें साथ निभाने, रक्षा करने और ईमानदारी का वचन शामिल होता है। वधू पाँच प्रतिज्ञाएँ लेकर पति के प्रति निष्ठा और गृहस्थी की जिम्मेदारी निभाने का संकल्प लेती है।
- प्रतिज्ञाओं के बाद वर-वधू अग्नि के चारों ओर फेरे लगाते हैं। इस दौरान महिलाएं मंगल गीत गाती हैं, जिससे विवाह संस्कार पूर्ण होता है।
“पैली भांवर के परतई भौजी मन मुस्कानी
दूजी भांवर के परतई मांई मन सकुचानी
तीजी भांवर के परतई वीरन हिय भर आओ
चौथी भांवर के परतई सखियन मोद मनाओ
पांची भांवर के परतई माई-पीर सिरानी
छाटी भांवर के परतई मैना मन बिलखानी
साती भांवर के परतई बेटी भई है बिरानी”
18. सिंदूर और मंगलसूत्र (Sindoor & Mangalsutra Ceremony)
- फेरे पूरे होने के बाद दूल्हा दुल्हन की मांग में सिंदूर भरता है, जो उसके सुहागिन होने और विवाह के पवित्र बंधन का प्रतीक होता है।
- इसके बाद दूल्हा दुल्हन के गले में मंगलसूत्र पहनाता है, जो पति-पत्नी के अटूट प्रेम और विश्वास का प्रतीक माना जाता है।
- इस रस्म के बाद बुजुर्ग दंपति को सुखी वैवाहिक जीवन का आशीर्वाद देते हैं।
19. बिछिया दबाई (Toe Ceremony)
- बिछिया (पैर की उंगली में पहना जाने वाला आभूषण) सुहाग का प्रतीक होती है और इसे पहनना विवाहिता स्त्री के लिए शुभ माना जाता है।
- इस रस्म में दुल्हन की भाभी अपने हाथों से दुल्हन की पैर की उंगलियों में बिछिया पहनाती है, जिससे उनके वैवाहिक बंधन की पुष्टि होती है।
- इस रस्म के बाद बड़ों का आशीर्वाद लिया जाता है ताकि दंपति का जीवन सुखी और समृद्ध रहे।
20. पांव पखराई / बाती टराई (Baati Tarai)
- फेरे पूरे होने के बाद वर-कन्या के चरण धोए जाते हैं और उन्हें आभूषण, पैसे व अन्य उपहार भेंट किए जाते हैं।
- इसके बाद दूल्हा ससुर के कुल-देवता गृह (मैंहर-गृह) में प्रवेश करता है।
- साली-सरहजें द्वार पर पर्दा डालकर दूल्हे को अंदर आने से रोकती हैं और मजेदार पारंपरिक गीत गाती हैं..
“धीरे-धीरे आओ छिनर के नदिया बहत है तेरी;
बैना मोरे भैया जुडिया मिलत है।”
- दूल्हे के घर प्रवेश के बाद वर-वधू कुल देवता के समक्ष दो जलती हुई बत्तियां सोने के टराई से एक करते हैं, जो दो हृदयों के एक होने का प्रतीक है। इस दौरान वर को नेंग (उपहार) दिया जाता है।
- इसके बाद दूल्हा-दुल्हन एक-दूसरे को दूध-भात खिलाते हैं, जिससे स्नेह और एकता का भाव प्रकट होता है।
- रस्म पूरी होने के बाद दूल्हा जनवासे लौट जाता है।
21. कुंअर कलेउ / कलेवा (Kalewa)
- दूल्हा और दूल्हे के घर के लड़के और लड़कियां कुंअर कलेउ के लिए सुबह जनसेवा से फिर से ससुराल आता है।
- पहले उसे मान-मनुहार किया जाता है, फिर वह कलेउ (भोजन) करता है।
- इस दौरान दूल्हे को उसकी इच्छा अनुसार उपहार भी दिए जाते हैं।
22. जूता चुराई (Joota Churai)
- कलेवा के दौरान दूल्हे की साली-सरहजें उसके जूते चुरा लेती हैं।
- जब दूल्हा जूते पहनने जाता है, तो सालियां उनसे नेग (उपहार या पैसे) मांगती हैं।
- दूल्हा और साली-सरहजों के बीच मोलभाव और मज़ाक चलता है, जिससे माहौल हंसी-खुशी से भर जाता है।
- जब दूल्हा उचित नेग दे देता है, तब उसे जूते वापस मिलते हैं।
23. मिलनी और भेंटे (Milani and Bhetein)
- दूल्हे के परिवार और दुल्हन के परिवार के बड़े बुजुर्गों की आपसी मुलाकात होती है। इस दौरान गले मिलकर आशीर्वाद दिया जाता है और रिश्तों को मजबूत करने का संकल्प लिया जाता है।
- दोनों पक्षों के लोग एक-दूसरे को शगुनस्वरूप पैसे, वस्त्र, मिठाइयाँ और उपहार भेंट करते हैं।
- यह रस्म परिवारों के बीच प्रेम और सम्मान को दर्शाती है और शादी समारोह के सौहार्दपूर्ण माहौल को और खास बनाती है।
24. विदाई (Bride’s Bidai)
- विदाई के समय वधू अपने माता-पिता और परिवार को छोड़कर वर के घर जाती है।
- यह रस्म बेहद भावनात्मक होती है।
शादी के बाद की रस्में (Post-Wedding Rituals in Bundelkhand)
25. गृह प्रवेश (Bride’s Grah Pravesh)
- दुल्हन ससुराल के दरवाजे पर रखे हुए चावल से भरे कलश को अपने दाहिने पैर से धीरे-धीरे आगे बढ़ाती है, जो समृद्धि और शुभता का प्रतीक होता है।
- सास आरती उतारकर और तिलक लगाकर नववधू का स्वागत करती है।
- दुल्हन एक थाल में रखे दूध और पानी में हाथ डालकर इसे चारों दिशाओं में छिड़कती है, जिससे घर में शांति और खुशहाली बनी रहे।
- नववधू लाल रंग के घोल में पैर रखकर घर में प्रवेश करती है, जिससे उसके पैरों के निशान घर में सुख-समृद्धि लाने का प्रतीक बनते हैं।
- इसके बाद दुल्हन घर के सभी सदस्यों से मिलती है और उन्हें प्रणाम कर आशीर्वाद लेती है।
26. देवी पूजन (Bride’s Devi Pujan)
- ससुराल में प्रवेश करने के बाद नववधू को कुल देवी या गृह देवी के मंदिर में ले जाया जाता है, जहां वह पूजा-अर्चना करती है।
- यह पूजा नवविवाहित जीवन की शुभ शुरुआत और देवी का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए की जाती है।
- दुल्हन परिवार की सुख-शांति और समृद्धि के लिए प्रार्थना करती है और देवी को प्रसाद चढ़ाती है।
- इस दौरान सास या घर की बड़ी महिलाएं दुल्हन को पारंपरिक रीति-रिवाजों से पूजा करने का तरीका बताती हैं।
- देवी पूजन के बाद दुल्हन को परिवार की नई सदस्य के रूप में स्वीकार कर लिया जाता है और उसे गृहलक्ष्मी माना जाता है।
27. सत्यनारायण कथा रस्म (Satyanarayan Katha Ceremony)
- विवाह के कुछ दिन बाद दूल्हा-दुल्हन के सुखी वैवाहिक जीवन और परिवार की समृद्धि के लिए सत्यनारायण भगवान की कथा करवाई जाती है।
- इस दौरान वर-वधू भगवान विष्णु के स्वरूप सत्यनारायण जी की पूजा करते हैं और पंचामृत, फल, फूल, और प्रसाद अर्पित किया जाता है।
- पंडित सत्यनारायण कथा सुनाते हैं, जिसमें सच्चाई, भक्ति और परोपकार के महत्व को बताया जाता है।
- इस कथा में ससुराल और मायके दोनों पक्षों के लोग शामिल होते हैं और मिलकर पूजा-अर्चना करते हैं।
- कथा के अंत में सत्यनारायण भगवान को भोग लगाया जाता है और फिर सभी रिश्तेदारों और उपस्थित जनों में प्रसाद वितरित किया जाता है।
- बुजुर्ग और परिजन दूल्हा-दुल्हन को सुखी, समृद्ध और खुशहाल जीवन का आशीर्वाद देते हैं।
28. धुलंडी / पहली रसोई (Bride’s First Kitchen Ritual)
- गृह प्रवेश और देवी पूजन के बाद नववधू को ससुराल की परंपरा के अनुसार पहली बार रसोई में प्रवेश कराया जाता है।
- इस रस्म में दुल्हन पहली बार ससुराल में कुछ मीठा बनाती है, जैसे हलवा, खीर या कोई पारंपरिक मिठाई। इसे घर में सुख-समृद्धि और मीठे संबंधों का प्रतीक माना जाता है।
- नववधू द्वारा बनाई गई मिठाई सबसे पहले परिवार के बुजुर्गों और अन्य सदस्यों को परोसी जाती है। वे इसे प्रेमपूर्वक ग्रहण करते हैं और दुल्हन को आशीर्वाद देते हैं।
- इस मौके पर सास, ननद, जेठानी या अन्य परिजन दुल्हन को नेग के रूप में उपहार या आभूषण भेंट करते हैं। इसे दुल्हन के स्वागत और उसे परिवार में स्वीकार करने की रस्म माना जाता है।
- यह रस्म नववधू की गृहस्थी में पहली भूमिका को दर्शाती है और यह सुनिश्चित करती है कि वह ससुराल में प्रेम और अपनापन महसूस करे।
29. पग फेरनी (Bride’s Visit to Parental Home)
- शादी के कुछ दिन बाद नववधू पहली बार अपने मायके जाती है, जिसे पग फेरनी या पगफेरे रस्म कहा जाता है।
- जब दुल्हन मायके पहुँचती है तो उसका धूमधाम से स्वागत किया जाता है और माता-पिता उसे आशीर्वाद और उपहार देते हैं।
- इस अवसर पर नववधू के लिए खास पकवान बनाए जाते हैं और पूरा परिवार साथ बैठकर भोजन करता है।
- कुछ समय मायके में बिताने के बाद, भाई या पिता उसे ससुराल वापस छोड़ने जाते हैं और इस दौरान उपहार या मिठाइयाँ लेकर जाते हैं, जिसे “भात” या “नेग” कहा जाता है।
- यह रस्म मायके और ससुराल के रिश्तों को मजबूत करने के लिए की जाती है और नववधू को यह एहसास कराती है कि वह दोनों परिवारों के लिए समान रूप से प्रिय है।
30. मुंह दिखाई (Muh Dikhai)
- यह रस्म शादी के बाद ससुराल में दुल्हन के आधिकारिक स्वागत के रूप में की जाती है, जहाँ परिवार की महिलाएँ और रिश्तेदार नववधू से मिलते हैं।
- नववधू अपना घूँघट हटाकर घर की बड़ी-बुजुर्ग महिलाओं और अन्य रिश्तेदारों को अपना चेहरा दिखाती है।
- इस मौके पर सास, ननद, जेठानी, देवरानी और अन्य महिलाएँ दुल्हन को उपहार (गहने, कपड़े, पैसे या मिठाइयाँ) और आशीर्वाद देती हैं।
- यह रस्म नववधू और ससुराल के लोगों के बीच अपनापन बढ़ाने का प्रतीक होती है, जिससे दुल्हन को अपने नए परिवार के साथ घुलने-मिलने का मौका मिलता है।
31. सुहागली खिलाना (Bride’s First Sweet Dish)
- शादी के बाद यह रस्म दुल्हन को पहली बार सुहागली (दूध से बनी विशेष मिठाई) खिलाने की परंपरा है।
- यह रस्म दुल्हन को ससुराल में अपनापन और सम्मान देने का प्रतीक मानी जाती है।
- इस अवसर पर घर परिवार की सभी बहुएं दुल्हन के साथ मिठाई खाती हैं।
- यह रस्म नववधू को यह जताने के लिए होती है कि अब वह इस घर की बहू है और सभी के साथ प्रेमपूर्वक रहेगी।
- सुहागली खिलाना दुल्हन के नए जीवन की मीठी शुरुआत और उसके अच्छे भविष्य की मंगलकामना का प्रतीक है।
निष्कर्ष:
बुंदेली विवाह (Bundelkhand Marriage Rituals) न केवल परंपराओं से भरी होती हैं बल्कि इसमें पूरे परिवार और समाज की भागीदारी होती है। यहाँ की शादी एक उत्सव की तरह मनाई जाती है जिसमें हर रस्म का अपना विशेष महत्व होता है।
Bundelkhand Marriage Rituals In Hindi: अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
प्रश्न: बुंदेलखंड में शादी कैसे होती है?
उत्तर: बुंदेलखंड में विवाह पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ संपन्न होता है। शादी मांगनी (सगाई) से शुरू होती है, फिर तेल बान, मंडप, कंकन बंधाई, निकासी, कन्यादान, फेरे, सिंदूरदान और विदाई जैसी रस्में होती हैं। विवाह के बाद गृह प्रवेश, देवी पूजन और सत्यनारायण कथा होती है।
प्रश्न: बुंदेली विवाह की खास परंपराएं क्या हैं?
उत्तर:
- मातृ पूजन: शादी से पहले मिट्टी लाकर कुलदेवता की पूजा।
- निकासी: बारात जाने से पहले पूजा और आशीर्वाद।
- चीकट (भात देना): भाई बहन को उपहार देता है।
- जूता चुराई: साली-सरहजें दूल्हे के जूते छिपाकर पैसे मांगती हैं।
- सुहागली खिलाना: दुल्हन को मिठाई खिलाकर स्वागत किया जाता है।
प्रश्न: बुंदेलखंड की शादी की मुख्य रस्में कौन-कौन सी होती हैं?
उत्तर:
- तेल बान – हल्दी और तेल से नहलाने की रस्म।
- कंकन बंधाई – वर-वधू के हाथों में रक्षा सूत्र बांधना।
- निकासी – बारात प्रस्थान से पहले पूजा।
- फेरे – अग्नि के सात फेरे लेकर विवाह संपन्न।
- सिंदूर और मंगलसूत्र – दूल्हा दुल्हन की मांग में सिंदूर भरता है।
- गृह प्रवेश – दुल्हन का ससुराल में स्वागत।
- सत्यनारायण कथा – नव दंपति के सुख-शांति के लिए कथा।
प्रश्न: बुंदेली शादी और उत्तर भारतीय शादी में क्या अंतर है?
उत्तर: बुंदेली और उत्तर भारतीय शादियों में कई अंतर होते हैं। बुंदेली विवाह में तेल बान रस्म में हल्दी और तेल दोनों लगाया जाता है, जबकि उत्तर भारतीय शादी में सिर्फ हल्दी लगती है। निकासी रस्म में बारात प्रस्थान से पहले विशेष पूजा होती है, जो उत्तर भारतीय शादी में नहीं देखी जाती। चीकट रस्म में भाई बहन को भेंट देता है, जिसे उत्तर भारत में भात रस्म कहा जाता है। विवाह के बाद बुंदेलखंड में सत्यनारायण कथा अनिवार्य होती है, जबकि उत्तर भारत में यह हर जगह जरूरी नहीं होती।
प्रश्न: बुंदेली विवाह में कौन-कौन से रीति-रिवाज निभाए जाते हैं?
उत्तर:
- मांगनी (सगाई) – विवाह पक्का करने की रस्म।
- तेल बान – शादी से पहले हल्दी-तेल का लेप।
- निकासी – बारात से पहले घर में पूजा।
- फेरे – अग्नि के चारों ओर सात फेरे।
- गृह प्रवेश – दुल्हन का ससुराल में स्वागत।
- देवी पूजन – कुल देवी के समक्ष नववधू की पूजा।
- पग फेरनी – दुल्हन पहली बार मायके लौटती है।
ट्रेंडी डिजाइनर हैवी इयररिंग्स और…