बंगाली विवाह की रस्म और रिवाज – Bangali Wedding Rituals and Traditions

0
1147
बंगालियों के विवाह की रस्म और रिवाज

বাঙালি বিবাহের আচার ও ঐতিহ্য

हमारा भारत एक धार्मिक देश है जिसमें हर धर्म के लोग हैं और सभी धर्म के अपने रीति रिवाज और परंपराएं हैं। भारत में अनेक भाषाओं के साथ-साथ अनेक रीति-रिवाज भी निभाए जाते हैं। आज हम आपके लिए  बंगाली विवाह की रस्म और रिवाज (Bangali wedding rituals and traditions in Hindi) के बारे में आर्टिकल लेकर आए हैं। जैसे कि आप जानते हैं शादियों का सीजन आ रहा है और सब लोग इस बात से उत्सुक होते हैं की शादी में किस तरह के फंक्शन होते हैं जिन्हें वो एन्जॉय करना चाहते हैं।

बंगाली विवाह की रस्म

तो हम आपको बता दें कि उत्तरांचल से लेकर पश्चिम बंगाल तक भारत के हर राज्य में शादियों की एक अलग परंपरा निभाई जाती है। यही शायद हमारे देश भारत की खासियत है। आपने बॉलीवुड मूवीज और टीवी सीरियल्स में बंगाली शादियों की कुछ तो झलक देखी होगी जो कि देखने में काफी इंटरेस्टिंग लगती है। तो चलिए बात करते हैं बंगाली शादियों के रीति रिवाज और परंपराओं के बारे में: (Wedding Bengali traditions and rituals)

बंगाली शादी से पहले के रीति रिवाज, रस्में और परंपराएं

बंगाली शादी में आदान-प्रदान की रस्म

बंगाली शादी से पहले की यह सबसे पहली रस्म है जो लड़का-लड़की और उनके परिवार आपस में निभाते हैं। जब लड़का लड़की एक दूसरे के साथ पूरी जिंदगी बिताने के लिए राजी हो जाते हैं उसके बाद उन दोनों की परिवारों की एक-दुसरे से मुलाकात करवाई जाती है। यह न केवल एक फॉर्मेलिटी होकर बंगाली शादी की एक परंपरा है। जिसे आदान-प्रदान की रस्म (Bengali wedding rituals) का नाम दिया जाता है।

बंगाली शादी में आदान-प्रदान की रस्म

इस रिवाज में दोनों परिवारों के पंडित और दोनों परिवारों के बड़े बूढ़ों के सामने दूल्हा दुल्हन की कुंडलियां मिलाई जाती हैं और साथ ही दोनों परिवार एक-दूसरे के साथ गिफ्ट भी शेयर करते हैं। मॉडर्न समय के रहते हुए कुछ लोग कुंडलिया मिलाने में ज्यादा विश्वास नहीं करते हैं मगर वह इस परंपरा को आज भी आदान-प्रदान के रूप में निभाते हैं।

गुजराती विवाह की रस्में और रिवाज

बंगाली शादी में माता-पिता का आशीर्वाद लेने की रस्म

अपनी नई जिंदगी की शुरुआत हर दूल्हा-दुल्हन बड़ों के आशीर्वाद से ही करते हैं। बंगाली शादी में इसे एक परंपरा के रूप में निभाया जाता है ।यह रस्म तब निभाई जाती है जब दोनों परिवार और दूल्हा-दुल्हन एक दूसरे के साथ पूरी जिंदगी का रिश्ता निभाने के लिए तैयार हो जाते हैं। दुल्हन के परिवार वाले होने वाले दूल्हे के घर जाते हैं और तोहफों के रूप में उस पर अपना आशीर्वाद बरसाते हैं।

बंगाली शादी में माता-पिता का आशीर्वाद लेने की रस्म

इस परंपरा में दुल्हन के परिवार वाले दूल्हा और दुल्हन दोनों के ऊपर ट्रैफिल के पत्ते और भूसी वाले चावलों का छिड़काव भी करते हैं ऐसा करना बंगाली शादी में काफी शुभ माना जाता है। और साथ ही दोनों को इस परंपरा के मुताबिक सोने के गहने गिफ्ट में दिए जाते हैं।

बंगाली शादी में वृद्धि पूजा की रस्म

शादी की तारीख तय होने के बाद होने वाले दूल्हा-दुल्हन के लिए एक पूजा रखवाई जाती है जिसे बंगाली शादी में वृद्धि पूजा का नाम दिया जाता है। इस पूजा में दूल्हा और दुल्हन और उनके परिवार वाले अपने पूर्वजों को याद करते हैं और अपनी नई जिंदगी की शुरुआत के लिए अपने बड़े-बुढो और अपने पूर्वजों का आशीर्वाद लेते हैं।

बंगाली शादी में वृद्धि पूजा की रस्म

बंगाली शादी में आई बुढो भात की रसम

बंगाली शादी में शादी से एक रात पहले यह रस्म निभाई जाती है। इसमें होने वाली दुल्हन अपने घर में अपने माता-पिता के साथ अपने घर में अंतिम भोजन ग्रहण करती है क्योंकि उस दिन के बाद से उसे अपने माता-पिता को छोड़कर अपने नए घर में जाना होता है।

बंगाली शादी में आई बुढो भात की रसम

ये रस्म भी काफी भावुक होती है। इस अवसर पर लड़की वाले अपने परिवार के करीबी रिश्तेदार और करीबी दोस्तों को भी न्योता देते हैं और इस रस्म के रहते वह खूब इंजॉय करते हैं और नाचते गाते हैं।

बंगाली शादी में गाए होलुद तत्व की रसम

बंगाली शादी से पहले इस रस्म के मुताबिक होने वाली दुल्हन के ससुराल वाले अपनी होने वाली बहू के लिए पारंपरिक उपहार भेजते हैं। जिसमें वह अपने प्यार के साथ-साथ गहने और बहुत से उपहार भेजते हैं। इसी रस्म को गाए होलुद तत्व का नाम दिया जाता है।

बंगाली शादी में गाए होलुद तत्व की रसम

उन उपहारों में दुल्हन की साड़ी, मेकअप का सामान, बहुत सी मिठाइयां, भूसी वाले चावल, पान, मछली, दही और कई अन्य बंगाली पारंपरिक उपहार होते हैं।

Bengali wedding Rituals and Traditions in Hindi!!

बंगाली शादी में दोधी मंगोल की रस्म

दोधी मंगोल की रस्म बंगाली शादी में काफी महत्वपूर्ण है जो शादी वाले दिन दूल्हा और दुल्हन दोनों के घर पर की जाती है। इस दोधी मंगोल रस्म के मुताबिक दूल्हा और दुल्हन कुछ सुहागन महिलाओं के साथ अपने घर के पास के तालाब पर जाते हैं और वहां देवी गंगा से अपनी सुखमयी ज़िन्दगी के लिए आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

इसके बाद दूल्हा और दुल्हन दोनों ही उस तालाब से पानी का एक घड़ा भरकर अपने घर पर लेकर जाते हैं।

बंगाली शादी में हल्दी यानि कि होलुद कोटा की रसम

हल्दी की रस्म न केवल बंगाल बल्कि पूरे भारत की राज्यों की हर शादी में निभाई जाती है। बस रस्म को निभाने के कुछ तरीके डिफरेंट होते हैं। जैसे कि बंगाली शादियों में हल्दी सेरिमनी को होलुद कोटा और स्नान कहा जाता है।

बंगाली शादी में हल्दी यानि कि होलुद कोटा की रसम

बंगाली शादी की इस रसम में पांच या सात सुहागन महिलाएं अपने-अपने होने वाले दूल्हा और दुल्हन दोनों को हल्दी का पेस्ट और तेल लगाती है ताकि शादी के दिन उन दोनों का रंग निखार कर आए। इस रस्म को भी काफी मनोरंजक तरीके से निभाया जाता है। इसके बाद उनको स्नान करवाकर नए कपड़े पहनाए जाते हैं।

बंगाली शादी में दुल्हन का लाल और सफेद चूड़ा पहनने की रस्म (शंख पोराण की रस्म)

बंगाली शादी में दुल्हन केवल लाल रंग का ही नहीं बल्कि लाल और सफेद रंग का चूड़ा पहनती है। इस चूड़े को पहनने की रस्म जिसे शंख पोराण कहा जाता है।

लाल और सफेद चूड़ा पहनने की रस्म

इस रसम में भी दुल्हन के घर पर सात विवाहित महिलाएं यानी कि सुहागन स्त्रियां लाल और सफेद चूड़ा होने वाली दुल्हन को पहनाती हैं। इसके बाद दुल्हन को शादी के लिए तैयार किया जाता है।

रतालिका तीज कब है

बंगाली शादी के दिन होने वाली परंपराएं और रसमें

बंगाली शादी में बारात बारात यानि कि बोर जात्री की रस्म

नॉर्थ इंडिया की तरह बंगाली शादियों में भी बारात की रस्म बहुत धूमधाम से की जाती है। जिसे बंगाल में बोर जात्री कहा जाता है। इसमें दूल्हा अपने परिवारजनों और दोस्तों के साथ शादी के लिए तैयार होता है और उसे घोड़ी पर बिठाया जाता है।

बंगाली शादी में बारात बारात यानि कि बोर जात्री की रस्म

घोड़ी पर बैठकर वह अपने दुल्हन को लेने के लिए अपने विवाह स्थल की ओर प्रस्थान करता है।

बंगाली शादी में दूल्हे के स्वागत की रस्में (बोरो बोरान की रस्म) (Bengali ritual of Boro Boran)

हमारे भारत के हर राज्य की शादी में दूल्हे का स्वागत बहुत ही मान-सम्मान से किया जाता है। मगर बंगाल में इस रस्म को एक नए तरीके से निभाया जाता है। जिसे बोरो बोरान की रस्म का नाम दिया जाता है। जिसमें एक प्लेट जिसे बंगाली लोग बरन डाला (Baran Dala) कहते हैं उसमें दूल्हे के स्वागत का सामान होता है। जिसे सबसे पहले दूल्हे के माथे पर और फिर जमीन पर और फिर से उसके माथे से लगाया जाता है।

बंगाली शादी में दूल्हे के स्वागत की रस्में

इसके बाद दुल्हन की मां अपनी बेटी के होने वाले दुल्हे की आरती करती है और उसका अपने घर में या विवाह स्थल में स्वागत करती है। इस रस्म के रहते दूल्हे और उसकी बारात के लिए बहुत सी मिठाइयां भी परोसी जाती हैं।

बंगाली शादी में चड़ना टोला की रसम

बंगाली शादी में होने वाले दूल्हे को भी उसकी ससुराल की तरफ से कपड़े दिए जाते हैं। जिसे पोटो वस्त्र (Poto Vstr Ritual of Bengali Wedding) कहा जाता है। जिसमें दूल्हे को शादी की बेधि पर बिठाने से पहले दुल्हन के घर से वह व्यक्ति नए कपड़े देता है जो की संप्रदान (कन्यादान) करने वाला है।

बंगाली शादी में चड़ना टोला की रसम

आमतौर पर यह रस्म दुल्हन के परिवार से कोई बुजुर्ग पुरुष द्वारा ही निभाई जाती है जैसे की दुल्हन के पापा या दुल्हन के चाचा इस रस्म को निभाते हैं। चड़ना टोला की रस्म के बाद ही दुल्हन मंडप में आती है।

बंगाली शादी में दूल्हे के फेर लेती हुई दुल्हन की रसम (सातपक की रस्म)

सात पाक एक ऐसी रसम है जो केवल बंगाली शादी में ही देखी जाती है। और इसका दृश्य बेहद सुंदर भी होता है। जहां दुल्हन लकड़ी के चौकी पर बैठती है जिसे पीढ़ी भी कहा जाता है। उस पीढ़ी को उसके भाई या उसके चाचा उठाकर मंडप में लेकर आते हैं।

बंगाली शादी में दूल्हे के फेर लेती हुई दुल्हन की रसम

मंडप में प्रवेश करने पर दुल्हन अपने होने वाले दूल्हे को नहीं देखती है इसके लिए उसने अपना चेहरा पवित्र पान के पत्तों से ढक रखा होता है। उसे उस पीढ़ी पर बिठाकर ही उसके भाई या उसके चाचा दुल्हन को दूल्हे के इर्द-गिर्द सात चक्कर लगवाते हैं।

बंगाली शादी में शुभो दृष्टि की रस्म

बंगाली शादी की ये रस्म काफी महत्वपूर्ण हैं। सात फेरे पूरे हो जाने के बाद दुल्हन अपने चेहरे से पवित्र पान के पत्तों को हटाती है और अपने दूल्हे को अपना चेहरा दिखाती है।

शुभो दृष्टि की रस्म में दूल्हा और दुल्हन सभी परिवार जनों की मौजूदगी में एक दूसरे को पहली नज़र देखते हैं। इसीलिए इसे शुभो दृष्टि का नाम दिया जाता है।

बंगाली शादी में जयमाला यानि कि माला बादल की रस्म

शुभो दृष्टि की रस्म के बाद बंगाली शादी में दूल्हा और दुल्हन एक दूसरे को फूलों भारी जयमाला पहनाते हैं। इस दौरान भी दुल्हन उसी लक्कड़ की पीढ़ी पर ही बैठी हुई होती है।

बंगाली शादी में जयमाला यानि कि माला बादल की रस्म

दूल्हा और दुल्हन तीन बार एक दूसरे के साथ माला का आदान प्रदान करते हैं। और एक दूसरे को पति पत्नी के रूप में स्वीकार करते हैं। इस रस्म को बंगाली शादियों में माला बादल भी कहा जाता है।

बंगाली शादी में कन्यादान यानि कि संप्रदान की रसम

माला बादल की रस्म पूरी होने के बाद दूल्हा-दुल्हन एक दूसरे की जिंदगी में अपना पहला कदम बढ़ाते हैं। इसके बाद वह आदमी जो दूल्हे को पोटो वस्त्र देता है वही दुल्हन का हाथ कन्यादान के समय दूल्हे के हाथ में भी देता है।

बंगाली शादी में कन्यादान यानि कि संप्रदान की रसम

फिर उन दोनों के हाथों को एक पवित्र धागे से बांध दिया जाता है और पंडित यानी की पुजारी ढेर सारे वैदिक मंत्रों का जाप करते हैं कि इन दोनों की जिंदगी में खुशहाली रहे। हिंदू शादियों में इस रस्म को कन्यादान कहा जाता है मगर बंगाली शादियों में इस रस्म को संप्रदान का नाम दिया जाता है।

बंगाली शादियों में फेरे यानि कि सप्तपदी की रस्म

अग्नि की बेधि वह जगह है जहां पंडित मंत्रों का जाप करता है और दूल्हा-दुल्हन एक दूसरे के साथ उस अग्नि को साक्षी मानकर सात फेर लेते हैं। जिसे सात पाक भी कहा जाता है क्यूंकि यहाँ दूल्हा-दुल्हन सात पवित्र फेरे अग्नि के इर्द-गिर्द लेते हैं।

बंगाली शादियों में फेरे यानि कि सप्तपदी की रस्म

इस रस में बंगाली शादी के दूल्हा और दुल्हन अपने पैर की उंगलियों से 7 पान के पत्तों पर रखी हुई सुपरियों को अपने हर फेरे के साथ छूते जाते हैं।

बंगाली शादी में दूल्हा दुल्हन अग्नि में डालते हैं मुरमुरे की रस्म (अंजलि की रस्म)

बंगाली शादी की इस रसम में दूल्हा और दुल्हन पवित्र अग्नि को मुरमुरे का भोग चढ़ाते हैं। यानी कि फेरे कंप्लीट होने के बाद वह मुरमुरे उस अग्नि में डालते हैं। इस रस्म में दुल्हन का भाई अपनी बहन के हाथों में मुरमुरे (चावल) देता है और दूल्हा अपनी दुल्हन का हाथ पकड़ कर उस पवित्र अग्नि को भोग लगाते हैं।

(अंजलि की रस्म)

इस रस्म को या इस अनुष्ठान को अंजलि का नाम भी दिया जाता है

बंगाली शादी में सिंदूरदान की रसम

बंगाली शादी के दिन की सभी रसमें पूरे होने के बाद दूल्हा अपनी दुल्हन को सिंदूर लगाता है। यह रस्म शादी की सभी रसमोन के पूरे होने का प्रतीक होती है।

बंगाली शादी में दुल्हन की विदाई की रस्म  

इस रस्म के रहते दुल्हन अपने ससुराल वालों की तरफ से आई हुई साड़ी घोमता पहन कर अपने सर को ढकती है और अपने पति से अपनी मांग में सिन्दूर लगवाती है। इस समय भी पंडित मंत्रों का जाप करते हैं।

बंगाली शादी में शादी पूरी होने के बाद की रस्में और परंपराएं

Bengali wedding Rituals and Traditions)

बंगाली शादी में दुल्हन की विदाई की रस्म

शादी की जब सभी रसमें पूरी हो जाती हैं और दूल्हा-दुल्हन एक दूसरे के साथ पूरी जिंदगी निभाने के लिए पवित्र बंधन में बंध जाते हैं। उसके बाद दुल्हन की विदाई की जाती है। दुल्हन अपने माता-पिता और अन्य सदस्यों को विदाई देती है और यह समय काफी भावुक होता है।

बंगाली शादी में दुल्हन की विदाई की रस्म  

उसके बाद वह अपने पति और ससुराल वालों के साथ अपने नए घर में जाने के लिए अपने घर वालों से विदाई लेती है। वो जाते समय अपने पीछे चावल गेर के जाती है जिसका मतलब है कि वो इस इच्छा से घर से जा रही है कि उसका मायका हमेशा धन-धान्य से भरा रहे।

बंगाली शादी में बौ बरन की रस्म

बो बरन की रस्म दूल्हे के घर पर दुल्हन के स्वागत के लिए की जाती है। इस रस्म में दूल्हा और दुल्हन की गाड़ी के नीचे घर की महिलाएं पवित्र जल डालती हैं। फिर दरवाजे पर दुल्हन लाल रंग और दूध से भरी हुई एक प्लेट में अपना पांव रखती है और नए घर में इस पांव के साथ प्रवेश करती है।

बंगाली शादी में बौ बरन की रस्म

इस रस्म को लक्ष्मी के स्वागत का नाम भी दिया जाता है और इन पैरों के निशान को लक्ष्मी के पैर के रूप में माना जाता है कि आज घर में लक्ष्मी आई है जो घर को धन-धान्य से भर देगी।

बंगाली शादी में कालरात्रि की रस्म

बंगाली शादी की यह रस्म भी काफी रोमांचक है। दूल्हे के घर जब दुल्हन की पहली रात होती है तो उन दोनों को अलग-अलग कमरों में सोना पड़ता है। ना चाहते हुए भी इस रस्म को दोनों को ख़ुशी-ख़ुशी निभाना पड़ता है। इसीलिए इस रात को कालरात्रि का नाम दिया जाता है।

बंगाली शादी में बौ भात की रसम

बो भात की रस्म नई दुल्हन के लिए है। जहां उसने अपने नए परिवार के लिए खाना बनाना होता है। इस रस्म में दुल्हन दूल्हे के रिश्तेदारों और दोस्तों मित्रों के लिए लंच या पार्टी आयोजित करती है।

बंगाली शादी में बौ भात की रसम

नए ट्रेंड के मुताबिक दुल्हे के परिवार वाले मीठा बनवा कर बाकी सब अरेंजमेंट होटल में कर लेते हैं।

बंगाली शादी में फूल शोज्जा की रसम

शादी की सभी रसमें पूरे होने के बाद फूल शोज्जा की रस्म निभाई जाती है। यह पति और पत्नी की एक साथ पहली रात होती है। इस दौरान उनके कमरे और उनके बिस्तर को फूलों से सजाया जाता है और दुल्हन को नई साड़ी उसके ससुराल वालों की तरफ से दी जाती है।

बंगाली शादी में फूल शोज्जा की रसम

उस सभी सजो सामान को पहनकर और नए गहने पहन कर दुल्हन अपनी फूल शोज्जा की रस्म के लिए तैयार होती है।

तो ये थी बंगाली शादियों की परंपराएं और रस्में!! (Bengali wedding Rituals and Traditions in Hindi) उम्मीद है आपको इन मज़ेदार रस्मों के बारे में पढ़कर काफी मजा आया होगा। हमारा हमेशा से ये ही मंशा होती है कि हम आपको हमारे आर्टिकल में हर तरह की जानकारी दें। अगर फिर भी आपके मन में बंगाली शादी की किसी भी परंपरा को लेकर कोई प्रश्न है तो आप हमें कमेंट सेक्शन में बिना देरी के पूछ सकते हैं। हमें आपके कमेंट्स का बेसब्री से इंतज़ार रहेगा।

बंगाली शादी में होने वाली रस्में और परंपराओं से रिलेटेड पूछे जाने वाले प्रश्न!! (FAQs related to Bengali Wedding rituals and Traditions)

  • बंगाली विवाह समारोह में कौन सी रसम प्रमुख है?

बंगाली विवाह की रस्में जैसे कि बोर जात्री, बोर बोरोन, पोटो बोस्त्रो, शुभो दृष्टि, माला बादल, सम्प्रदान, अंजलि आदि रस्में काफी प्रमुख हैं।

  • बंगाली लोगों की शादी कैसे होती है?

बंगाली शादी की रस्मों की शुरुआत वृद्धि पूजा से की जाती है। इस पूजा को अपने घर में करवाने के बाद ही वह सभी रस्मों-रिवाजों से शादी की तैयारी शुरू करते हैं। इसके बाद दोधी मंगोल समारोह का आयोजन भी किया जाता है जिसमें सभी परिवारजन और करीबी दोस्तों को खाना खिलाया जाता है।

  • बंगाली शादी में क्या पहनते हैं?

बंगाली शादी में दुल्हन लाल और सफेद रंग का चूड़ा पहनती है। इसके बाद ही दुल्हन अपनी पसंद के वस्त्र पहन कर शादी के लिए तैयार होती है।

  • बंगाली दुल्हन के हाथ में क्या होता है?

बंगाली दुल्हन के हाथ की दोनों कलाइयों में चूड़े के स्थ-साथ शंख और लाल मूंगा से बनी हुई चूड़ियां पहनी होती हैं। इसे पहनना बंगाली शादी में शिभ माना जाता है। इसलिए न केवल बंगाली दुल्हन बल्कि बाकी स्त्रियाँ भी इन चूड़ियों को पहनती हैं।

  • बंगाली दुल्हनें सर पर मुकुट क्यों पहनती हैं?

बंगाली शादी में दुल्हनों का सिर पर मुकुट पहनना जिस कि पोल कहां जाता है विवाह समारोह में पहनना बहुत ही सौभाग्य की बात होती है। इसे पहनकर दुल्हन अपने वैवाहिक जीवन में सुख समृद्धि का आगमन करती है।

  • बंगाली शादी में दुल्हन अपने मुंह के आगे पान के पत्ते क्यों रखती है?

बंगाली शादी में शुभो दृष्टि (Shubho Drishti in Bengali Wedding) नाम की एक विधि की जाती है उससे पहले दुल्हन अपने होने वाले दूल्हे को अपना चेहरा नहीं दिखती है। इसलिए वह अपने मुंह के आगे पान के पत्ते रखती है और शुभो दृष्टि की रस्म के समय पर ही वह अपने चेहरे की पहली झलक अपने होने वाले पति को दिखाती है।

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें